परिचय-
आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से उपचार करने के लिए सबसे पहले यह जानने की आवश्यकता है कि मनुष्य के हाथ तथा उंगलियां दबाव देने के लिए किस प्रकार कार्य करती हैं। मनुष्य हाथों की सहायता से साधारण से साधारण तथा जटिल से जटिल कार्यों को भी कर सकता है। बहुत पुराने समय से ही मनुष्य के शरीर के विभिन्न भागों को दबाने, मलने तथा थपथपाने का कार्य हाथों से करता आ रहा हैं।
वैसे तो मनुष्य के हाथों की तरह ही वनमानुषों के हाथ भी होते हैं जिसमें पांच-पांच उंगलियां होती हैं। लेकिन वनमानुषों का अंगूठा इतना विकसित नहीं होता है कि वह मनुष्य की तरह कार्य कर सके। मनुष्य के हाथ के अंगूठे में आठ मांसपेशियां होती है। इसी कारण अंगूठा सभी उंगलियों से अलग होता हैं। लेकिन छोटे बच्चों में ये अविकसित होता है और व्यक्ति की उम्र बढ़ने के साथ-साथ विकसित होता रहता है।
हाथों तथा उंगलियों की बनावट-
हाथ की हथेलियों पर झुकाव वाले आकार होते हैं जो ऊतकों से बना होता है हथेलियों पर क्यूटीस के छिद्र होते हैं जिससे पसीना निकलता हैं इन आकारों से हथेलियों को जहां तेज संवेदनशीलता का गुण मिलता है वहीं किसी वस्तु को पकड़ने की क्षमता भी मिलती है।
अंगुष्ठ मूल, उंगली पर्व तथा अव अंगुष्ठकमूल के उभरे भाग बहुत अधिक संवेदनशील होते हैं। अंगूठे, तर्जनी तथा अनामिका उंगलियों के पर्व बहुत अधिक संवेदनशील होते हैं। आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से उपचार करते समय इन संवेदनशील उभारों के ताप के संवेदी तत्वों से चिकित्सा रोगी की त्वचा की गर्माहट या शीतलता का निर्णय कर सकता है। मेइजनर स्पर्श अनुभूति करता है जबकि कार्पसल ताप का अहसास कराता है। पेसीनियन कार्पसल दबाव, क्रौसे के कार्पसल शीतलता तथा स्वतंत्र नाड़ियों के घोर दर्द का अहसास कराता है। आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा से उपचार करने के लिए ये मांस के कड़ेपन तथा शारीरिक ताप का अनुमान लगाने के लिए बहुत ही आवश्यक अंग होते हैं। इन सब कारणों को जानने के लिए जो व्यक्ति जितना अधिक अनुभवी होगा, वह उतना ही आसानी से केवल स्पर्श कर सूक्ष्म से सूक्ष्म शारीरिक परिवर्तनों को जान सकेगा।
नाखून-
नाखून की त्वचा पर सींग के जैसे पदार्थ होते हैं और यह पदार्थ प्लेट के आकार के समान होता हैं। नाखून का एक सिरा स्वतंत्र किनारे के समान होता हैं जबकि दूसरा सिरा उंगली की त्वचा में से उभरा रहता है। नाखून का निचला भाग अंकुरित सतह के जैसा होता है जिसे नाखून का तल कहते हैं। त्वचा का वह भाग जहां से नाखून शुरू होता है उसे नाखू आधारक कहते हैं और इस सिरे से नाखून का विकास होता है। एक दिन में नाखून का विकास लगभग 0.1 से लेकर 0.15 मि. मी. तक होता है। नाखून का जड़ श्वेत अर्द्धचन्द्राकार होता है जो अभी तक पूर्ण कठोर नहीं बना होता है।
नाखून का कई रोगों से सम्बन्ध-
1. नाखून का चम्मच जैसा आकार- नाखून के बीच का भाग चम्मच के समान दबा रहता है जिसके कारण खून में लौह तत्व की कमी, एक्जीमा तथा ड्यूडनल के कीटाणु पनपते हैं।
2. हिप्पोक्रेटिक नाखून- जब यह स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो नाखून का अंतिम सिरा नाखून के नोक को ढक देता है। यह नाखून के नाक तथा नाखून के मोटेपन के कारण होता है। इस अवस्था का सम्बन्ध हृदय के रोग, फेफड़ों के रोग तथा ‘श्वासनलियों से सम्बन्धित रोग से हो सकते हैं।
3. रीडी नाखून- लम्बी खांच वाला नाखून स्नायविक कुपोषण, अपर्याप्त विटामिन `ए´ या कृत्रिम उत्तेजकों से होता है।