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स्वास्थ्य को अच्छा बनाए रखने के लिए कुछ जरूरी नियम

परिचय-

          अगर किसी व्यक्ति को अपना स्वास्थ्य हमेशा के लिए अच्छा बनाए रखना हो तो उसे सबसे पहले अपने भोजन, पानी, रोशनी, वायु, कपड़ों और स्नान आदि पर अच्छी तरह से ध्यान देना चाहिए।

भोजन-

          बहुत से लोगों का मानना है कि पुष्टिदायक और ताकत देने वाला भोजन करने से ही शरीर हमेशा स्वस्थ और मजबूत बना रहता है। लेकिन यह बात किसी हद तक सही नहीं है। व्यक्ति को कोई भी भोजन खाने से पहले यह देख लेना चाहिए कि वह जो भोजन खाने जा रहा है उसकी पाचनशक्ति उस भोजन को पचाने की शक्ति रखती है अथवा नहीं। भोजन पचाने का काम ज्यादातर व्यक्ति की मेहनत पर ही निर्भर रहता है। व्यक्ति जितनी ज्यादा मेहनत करता है उसे उतना ही ज्यादा पौष्टिक भोजन करने की जरूरत पड़ती है। व्यक्ति की उम्र के मुताबिक भोजन की सामग्री और उसका वजन ठीक कर लेना चाहिए। जो लोग थोड़ा भोजन करते हैं उनको पौष्टिक भोजन की जरूरत पड़ती है। सर्दियों के मौसम में चर्बीदार भोजन ज्यादा लाभकारी रहता है और इन दिनों गर्मियों के मुकाबले ज्यादा भोजन करना नुकसान भी नहीं करता।

          भोजन में ज्यादा तेज मसाला जैसे लालमिर्च, कालीमिर्च आदि नुकसान करते हैं। भोजन को अच्छी तरह से पकाकर और धीरे-धीरे चबा-चबाकर खाना चाहिए। भोजन करने के बाद ठंडा पानी नहीं पीना चाहिए क्योंकि इससे भोजन की गर्मी समाप्त हो जाती है जो हमारे पाचनसंस्थान के लिए नुकसान-दायक है। जिन लोगों को अजीर्ण (बदहजमी) का रोग हो उन लोगों को भोजन करने के बाद थोड़ा सा गर्म पानी पी लेना चाहिए। अगर भोजन करने के बाद थोड़ा सा आराम भी कर लिया जाए तो रोगी के लिए अच्छा रहता है।

          अगर रोगी का पाचनसंस्थान बहुत देर तक खाली रहे अर्थात अगर रोगी काफी देर तक भूखा रहे तो भी उसका स्वास्थ्य खराब हो सकता है। रोगी का रात का भोजन दिन के भोजन की अपेक्षा हल्का ही होना चाहिए क्योंकि दिन के भोजन के बाद तो रोगी को भोजन पचाने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती वह घूमते-घूमते या काम करने से पच जाता है लेकिन रात का भोजन आसानी से नहीं पच पाता इसलिए भी रात का भोजन सोने से कम से कम 1 घंटा पहले कर लेना चाहिए। बहुत से लोगों का कहना है कि अगर बुढ़ापे में ज्यादा भोजन किया जाए तो उम्र लंबी होती है लेकिन लोगों की ये सोच बहुत गलत है। बल्कि बुढ़ापे में भोजन की मात्रा धीरे-धीरे कम कर देनी चाहिए।

भोजन साधारणत: 4 प्रकार का होता है जैसे-

  • छाना जातीय या मांस गठक भोजन (छाना, मछली, मांस, अंडे के अन्दर का सफेद भाग दाल आदि) इस तरह के भोजन से हमारे शरीर का पोषण और मांस-पेशियां मजबूत बनती हैं।
  • स्नेह या मक्खन-जातीय भोजन (घी, मक्खन, तेल, चर्बी आदि) इस तरह के भोजन हमारे शरीर की रक्षा के लिए जरूरी गर्मी मिलती है और शरीर में मेहनत करने की ताकत पैदा होती है इसके साथ ही शरीर का मोटापा भी थोड़ा-थोड़ा बढ़ता रहता है।
  • शर्करा जातीय भोजन (चीनी, मिश्री, गुड़, खजूर का रस, चावल, चूड़ा, लाई, धान का मीठा लावा, चना, साबूदाना, बार्ली, अरारोट, शटी, मैदा आलू आदि) इन चीजों के सेवन से हमारे शरीर की गर्मी और काम करने की शक्ति बढ़ती है तथा शरीर में चर्बी भी पैदा होती है।
  • लवण-जातीय भोजन (खाने वाला नमक, लौह-घटित लवण, चूना-घटित लवण, दाल आदि) इन चीजों को भोजन में प्रयोग करने से हमारे शरीर में खून साफ होता है और शरीर की हडि्डयां और मांस-पेशियां मजबूत होती हैं। अगर भोजन में नमक न हो तो व्यक्ति का जीना मुश्किल हो जाता है।

                दाल, चावल, रोटी, सब्जी, घी, तेल, गुड़ नींबू, फल-मूल, आलू, मछली, मांस, दूध, पानी आदि खाने-पीने की चीजों से हम लोग शरीर की रक्षा के लिए उपयोगी छाना, मक्खन, चीनी और नमक की जाति के उपदान जितना चाहिए उतना जमाकर शरीर का पोषण करते हैं और जिंदा रहते हैं। सिर्फ दूध और अंडे में ऊपर कहे हुए चारों तरह के उपादान एक साथ ही मौजूद रहने के कारण कोई भी व्यक्ति सिर्फ दूध या सिर्फ अंडा खाकर जिंदा रह सकता है।

     हमारे भोजन की सामग्री की किस-किस चीज में क्या-क्या मिलावट हो सकती है वह इस प्रकार की हैं-

अमावट-

अमावट में खट्टे आम का रस तथा रेशा, इमली, गुड़ और मैदा मिलाया जा सकता है।

आटा-

           आटे में सफेद खड़ी, चूना, चीनी, मिट्टी, भूसी, पिसा हुआ चावल, चने का सत्तू और खड़िया मिट्टी मिलाई जा सकती है।

अरारोट-

           अरारोट में पिसा हुआ चावल, पिसा हुआ भूटा और आलू का मैदा मिलाया जा सकता है।

घी-

          घी में नारियल का तेल, पोस्ता का तेल, कुसुम के बीज का तेल, महुआ का तेल, मूंगफली का तेल, वैसलीन, चर्बी, पिसे हुए चावल के साथ पिसा हुआ केला, अरबी या शकरकन्दी, बाजरा या जुआर का चूरा, सड़े हुए घी के साथ थोड़ा सा दूध या दही और थोड़ा सा अच्छा घी डालकर ओंटने से अच्छे घी की खुशबू आती है इसलिए लोग-बाग मिलावटी घी को भी खुशबू के कारण अच्छा समझ लेते हैं।

चावल-

          चावल में टूटा कीड़े लगा हुआ दाना, बर्मा का चावल या चूने का चूरा मिलाया जा सकता है।

दूध-

             दूध में फूंका देकर बीमार गाय के दूध से मक्खन निकालकर, बताशे, पुराने तालाब का सड़ा हुआ पानी, भैंस का दूध और सिंघाड़े का चूरा मिलाया जा सकता है।

बार्ली-

           बार्ली में शटी की बुकनी, चने का सत्तू, आलू का मैदा, केसुआ का मैदा या गेंहू का मैदा मिलाया जा सकता है।

शहद-

           शहद में चीनी और जिलोटीन नाम का एक मांसाहारी पदार्थ मिलाया जाता है।

मक्खन-

           मक्खन में सोरगोंजा का तेल, तिल का तेल, वैसलिन, मोम, चर्बी, नारियल का तेल और पिसा हुआ केला मिलाया जा सकता है।

मांस-

           बकरे के मांस में बकरी का मांस, बच्चे बकरे का मांस यहां तक कि मरे हुए जानवर या किसी भी दूसरे जानवर का मांस।

सरसों का तेल-

           सरसों के तेल में सोरगोंजा बिनोला, तिल, पोस्ते का दाना, मूंगफली का तेल, लाल मिर्च का चूरा या ब्लूमलेस आयल नाम का कैरोसिन तेल मिलाया जा सकता है।

दूध-

          दूध को व्यक्ति का पूरा भोजन कहा जाता है क्योंकि दूध में चारों प्रकार की खाने की सामग्री अच्छी तरह से होती है। इसलिए कोई व्यक्ति चाहे तो सिर्फ दूध के बल पर ही जीवित रह सकता है। बचपन में बच्चे के लिए मां का दूध ही सबसे अच्छा और पौष्टिक भोजन होता है। गधी का दूध, बकरी का दूध, भेड़ी का दूध या भैंस का दूध पीने के काम में लाया जा सकता है। अगर दूध को बिना उबाले कच्चा ही पिया जाए तो यह स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी रहता है क्योंकि दूध को उबालने से दूध के विटामिन कम हो जाते हैं। दूध में चीनी, मिश्री, पके हुए चावल या बार्ली मिलाकर पीने से दूध जल्दी पच जाता है।

          कच्चे दूध को मथने से दूध के ऊपर जो चीज तैरने लगती है उसे मक्खन कहा जाता है। हल्के गर्म दूध में दही का पानी या कोई दूसरी खट्टी चीज डालने से दूध जम जाता है इसको दही कहा जाता है। ताजे दही को मथने पर जो चीज दही के ऊपर तैरने लगती है उसे नैनू कहते है और जो नीचे पानी सा रह जाता है उसे मट्ठा कहते हैं। मट्ठा रोगी के लिए बहुत ही लाभ करता है। फिटकरी या नींबू का रस या कोई सा भी खट्टा पदार्थ डालने से दूध फट जाता है और छाना तैयार हो जाता है। इन छाने के नीचे जो पानी जमा रहता है उसे छाने का पानी कहा जाता है। ये छाने का पानी शरीर में ताकत बढ़ाने वाला होता है।

चाय पीना-

          किसी व्यक्ति को अच्छा स्वास्थ्य पाने के लिए चाय पीना बहुत लाभदायक है। जो लोग बहुत ज्यादा मेहनत करते है या कफ-प्रधान धातुवालों के लिए चाय पीना उतना हानिकारक नहीं है। चाय पीने से शारीरिक थकावट और मानसिक थकावट दूर हो जाती है। चाय के साथ फल या जिनमें पचाने की खूब ताकत हो, मांस, मछली, अंडा या छानाजातीय जैसी चीजें खाना लाभदायक रहती है।

चाय पीने के नुकसान-

          अगर ज्यादा चाय पी जाए तो व्यक्ति को भूख नहीं लगती, हृदय की धड़कन तेज होना, दिमागी परेशानी, नींद न आना जैसे रोग पैदा हो जाते हैं। अगर मांस-मछली के साथ चाय न पीकर 1 घंटे के बाद चाय पी जाए तो व्यक्ति के लिए ज्यादा फायदेमंद रहता है। सोने से पहले चाय नहीं पीनी चाहिए। मोटे प्रकृति वाले लोगों को चाय में चीनी के बदले नींबू का रस डालकर पीने से फायदेमंद रहता है।

कॉफी-

          काफी से चाय की तरह शरीर में नशा नहीं पैदा होता है और चुस्ती-फुर्ती भी आती है। कॉफी पीने से शरीर की थकान, सुस्ती आदि दूर हो जाती है।

कॉफी पीने से हानि-

          कॉफी पीने से भी चाय की ही तरह सिर का दर्द, नींद न आना, सपने आना, दिमागी परेशानी, भूख न लगना जैसे रोग पैदा हो जाते हैं। कॉफी पीने से साफ मल आता है। किसी-किसी का पेट और भी ज्यादा सख्त हो जाता है। कॉफी चाय से ज्यादा तेज होती है और ये व्यक्ति का हाजमा खराब करती है।

पानी-

          अगर कोई व्यक्ति साफ पानी पीता है तो ये उसके स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा रहता है। साफ पानी पेशियों को मजबूत बनाने और शरीर के बढ़ने में मदद करता है। इसलिए ये स्वास्थ्य और जीवनी-धारणा के लिए बहुत जरूरी है। पानी के बिना खाया हुआ भोजन हजम नहीं होता, इसलिए हमेशा साफ और ताजा पानी ही पीना चाहिए।

साफ पानी कैसे मिलता है?-

          नदी, समुद्र, झरने आदि का पानी नहीं पीना चाहिए क्योंकि इनके पानी में धातु और जहरीले पदार्थ मिले रहने के कारण ये पानी पीने के लायक नहीं रहता है यहां तक कि उससे भोजन बनाना या स्नान करना भी सही नहीं है। साफ पानी गहरे कूंए से मिल सकता है। कुआं, तालाब, जलाशय आदि में बीच-बीच में खासकर सर्दी आने से पहले या गर्मी के सीजन के दौरान पानी कम हो जाने के बाद एक बार तो कम से कम साफ कर ही लेना चाहिए। जलाशय को बीच-बीच में साफ न करने से नुकसान होता है।

          लोग-बाग घरों में पानी को साफ करने के लिए वाटर फिल्टर लगाते हैं लेकिन ये वाटर फिल्टर भी ज्यादातर लाभ के बजाय हानि ही तेपहुंचा हैं।

          कुएं के पानी का ऊपर का भाग बिल्कुल साफ-सुथरा दिखाई देने पर भी उसमें अंगाराम्ल वाष्प मिली रहने के कारण उसके पानी को पीना भी स्वास्थ्य की दृष्टि से सही नहीं है। कूंए के ऊपर के मुकाबले कुएं के नीचे का पानी ज्यादा शुद्ध रहता है।

पहनने वाले कपड़े-

          हम लोगों को भोजन के साथ-साथ कपड़ों के सम्बंध में भी संयम बरतना चाहिए। व्यक्ति के पहने हुए कपड़ों में शरीर को गर्म करने की कुछ ताकत नहीं रहती बल्कि शरीर की गर्मी को बनाए रखने के लिए ही कपड़े पहने जाते हैं। खाली शरीर फलालेन पहने से नुकसान होता है। बिना कारण से कपड़े पहनकर गर्मी-सर्दी न सहने लायक बना डालना भी सही नहीं है। इसलिए बचपन से ही शरीर को थोड़ा बहुत कष्ट सहने लायक बनाना चाहिए। हमारे शरीर में पसीना आने के साथ-साथ बहुत सा मैल भी बराबर निकलता रहता है और उसके दाग कपड़ों पर लग जाते हैं और ये शरीर के लिए नुकसानदायक है। इसलिए रोजाना पहनने वाले कपड़े हमेशा साफ-सुथरे ही होनी चाहिए। रात को सोते समय ज्यादा टाईट कपड़े पहनना नुकसानदायक रहता है। जूते के फीते भी कसकर बांधना भी सही नहीं है।

हवा-

          व्यक्ति के लिए जीवन और प्राण-धारण के लिए हवा बहुत ही जरूरी है। इसलिए पुराने जमाने के महान पुरुषों ने उसे `जगत प्राण´ कहा है। अशुद्ध हवा सेवन करने पर मनुष्य को उस समय तो नुकसान नहीं होता लेकिन इससे धीरे-धीरे शरीर, मन और स्वास्थ्य सभी नष्ट हो जाया करते हैं। रोगी और कमजोर व्यक्तियों के लिए ये बहुत ही नुकसानदायक साबित होती है। हम लोग जो सांस बाहर छोड़ते हैं उसके साथ `अंगारम्ल वाष्प´ (कार्बोनिक एसिड गैस) निकलती है। जिस कमरे में बहुत सारे आदमी एक-साथ रहा करते हैं उस कमरे में हवा के बाहर से बराबर न आने-जाने के कारण वह कमरा सारे लोगों की सांसों से निकले हुए `अंगारम्ल वाष्प´ से भर जाता है और अगर काफी समय तक मनुष्य ऐसी हवा का सेवन करता रहेगा तो उसकी मृत्यु जल्दी होना निश्चित होती है। इसलिए रहने वाले कमरे में ऐसी हवा का बाहर निकल जाने का सही तरह से प्रबंध होना चाहिए और बाहर की ताजी हवा आने के लिए खिड़कियां और दरवाजे होने चाहिए।

सूरज की रोशनी-

          व्यक्ति के स्वास्थ्य को सही रखने के लिए बाकी चीजों के साथ-साथ सूरज की रोशनी भी बहुत जरूरी है। हमेशा अपने स्वास्थ्य को अच्छा रखने के लिए चाहे बच्चे हो, बूढ़े हो या स्त्री हो सभी को कुछ देर तक सूरज की रोशनी लेनी चाहिए। जिन घरों में सूरज की रोशनी नहीं पहुंचती वहां पर रोगों का घर जल्दी बनता है तथा जिन घरों में सूरज की रोशनी सही तरह से पहुंचती है वहां पर हैजा, चेचक जैसे जानलेवा रोग फैलाने वाले कीटाणु पहले ही नष्ट हो जाते हैं इसलिए मकान बनवाते समय हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि उसमें सूरज की रोशनी आने का पूरा प्रबंध हो।

व्यायाम-

          व्यायाम या कसरत करना हर व्यक्ति के लिए फायदेमंद नहीं होता। जो लोग रोगी होते हैं या कमजोर होते हैं ऐसे व्यक्तियों को कसरत करने से नुकसान होता है। दंड-बैठक लगाना, मुदगर को घुमाना, तैरने से, तेज चलना ये सभी बहुत अच्छी और शरीर में फुर्ती पैदा करने वाली कसरतें होती हैं। रोजाना एक ही समय पर खुली हवा में, सुबह या तीसरे पहर कुछ देर तक व्यायाम करने से शरीर अच्छा रहता है।

स्नान-

     अच्छे स्वास्थ्य वाले व्यक्तियों के लिए पानी में डुबकी लगाकर स्नान करना अच्छा रहता है। नहाने से पहले पूरे शरीर में तेल लगाना फायदा करता है। रोजाना नहाने के बाद शरीर को अच्छी तरह से रगड़कर साफ करना अच्छा रहता है। नहाते समय सिर पर थोड़ा सा पानी डालने के बाद फिर दूसरे अंगों पर पानी डालना चाहिए। सुबह उठने के बाद जो लोग कसरत करते हैं उन्हें कसरत करने के बाद थोड़े समय ठहरकर नहाना चाहिए। समुद्र के पानी में नमक मिला हुआ रहता है इसलिए उस पानी से नहाना स्वास्थ्य के लिए बहुत ज्यादा अच्छा रहता है। अगर समुद्र का पानी नहीं मिलता हो तो नहाने के पानी में थोड़ा सा नमक मिलाकर नहाना अच्छा रहता है। अच्छे स्वास्थ्य वाले व्यक्तियों को सुबह और कमजोर व्यक्तियों के लिए 8 से 10 बजे नहाना चाहिए।


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