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रेपर्टरी

परिचय-

          रेपर्टरी होम्योपैथिक औषधियों के चुनने में बहुत ही ज्यादा मददगार होती है। होम्योपैथिक चिकित्सा के समय रोगी के सारे लक्षणों को जानकर औषधि का चुनना सम्भव नहीं है। होम्योपैथिक चिकित्सक रेपर्टरी की मदद से रोगी के रोग के किसी एक लक्षण को देखकर रोग समझ जाते हैं और उसकी औषधि का चुनाव कर लेते हैं।

मूत्राशय से सम्बंधित लक्षण और उसमे प्रयोग की जाने वाली औषधियां-

मूत्राशय में अकड़न-

  • रोगी को अपने मूत्राशय में अकड़न आ जाने पर या उसको दबाने पर दर्द होता हो तो रोगी को ऐकोन, कैल्के, आर्स, चेलि, ग्रैफा, हेलोड, हिपर, मैनसि या रूटा औषधियों में से कोई भी औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।
  • रोगी के मूत्राशय में अकड़न आ जाने के कारण होने वाला दर्द अगर दाईं तरफ होता हो तो उसे हेलोड, नक्स-वोमिका या फाइटो औषधि देनी चाहिए।
  • अगर मूत्राशय की अकड़न का दर्द रोगी को बाईं तरफ होता है तो बेंजोइक-एसि और जिंक औषधि लाभकारी रहती है।
  • रोगी को अपने मूत्राशय प्रदेश में अकड़न का दर्द होता है तो बर्बे, चेलि, हाइड्रो, मर्क-कोर और नक्स-वोमिका औषधियों में से कोई भी औषधि देना अच्छा रहता है।
  • अगर रोगी को अपने मूत्राशय में अकड़न के साथ खिंचाव जैसा दर्द महसूस हो तो किल्मे, कक्कस, नक्स-मस या टेरि औषधि उपयोगी रहती है।
  • रोगी को मूत्राशय में अकड़न आ जाने के कारण अगर किसी चीज से कुचल जाने जैसा दर्द हो तो रोगी को कैक्ट, किल्मे, मैनसि, पैरिरा या फाइसो औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को मूत्राशय प्रदेश में कुचल दिए जाने जैसा दर्द होता है तो बर्बे, फास्फो, जिंकम औषधि लाभकारी रहती है।
  • मूत्राशय में अकड़न आ जाने के कारण कुचल दिए जाने जैसा दर्द अगर उरुदेश तक फैल जाता है तो रोगी को बर्बे औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी के मूत्राशय में अकड़न आ जाने के कारण होने वाला दर्द पूरे मूत्राशय प्रदेश में फैलता हो तो रोगी को बर्बे, कैना-सैट, आयो, टेरि, जिंक औषधि देना उपयोगी रहता है।
  • अगर मूत्राशय में अकड़न आने का दर्द रोगी के दाएं पुट्ठे में फैलता हो तो टेरि औषधि लाभकारी रहती है।
  • अगर रोगी के मूत्राशय में अकड़न आ जाने का दर्द सुई चुभने जैसा या डंक मारने जैसा हो तो रोगी को ऐकोन, आर्नि, बेल, बर्बे, कैन्थ, चेलि, कोलोसि, कैलि-बाई, नक्स-वोमिका, कैलि-कार्ब, कैलि-नाई, लैके, टेरे , और मेजे औषधियों में से कोई भी औषधि देनी चाहिए।
  • रोगी के मूत्राशय में होने वाला अकड़न का दर्द अगर पेशाब की नली से होकर नीचे की तरफ फैलता है तो कैलि-बाई, ग्रैफा और लाइको औषधि लाभकारी रहती है।
  • अगर रोगी के मूत्राशय में अकड़न होने के कारण होने वाला दर्द पेशाब की नली में पहुंच जाता है तो रोगी को बर्बे औषधि देनी चाहिए।
  • अगर मूत्राशय का दर्द रोगी के हिलने-डुलने पर कम होता है तो टेरि औषधि लाभकारी रहती है।
  • मूत्राशय की अकड़न का दर्द अगर हिलने-डुलने पर बढ़ता है तो कोलचि और हेमा औषधि अच्छी रहती है।
  • अगर मूत्राशय का दर्द छींक आने पर बढ़ जाता है तो इन्थू औषधि लाभकारी रहती है।

एडिसंस रोग :.

  • रोगी को एडिसन रोग होने पर आर्स, बेल, कैल्के, फेरम, फेरम-आयोड, आयो, कैलि-काबे, नेट्रम-म्यूर, नाइट्रिक-एसिड, फास, साइलि, स्पाई और सल्फ औषधि का सेवन करने से लाभ मिलता है।
  • रोगी को अपने मूत्राशय में गर्मी मालूम होने पर कैलि-आयोड, लैके, नक्स-वोमिका या जिंजि औषधि लेनी चाहिए।
  • रोगी को अपने मूत्राशय के आसपास के भाग में गर्मी महसूस होने पर बर्बे, सिमि, हेलोड, फाइटो, प्लम्बम या टेरिब औषधि का सेवन करना चाहिए।
  • मूत्राशय में ठंडक महसूस होने पर स्पाइरो औषधि लेना लाभकारी रहता है।
  • मूत्राशय के आसपास के भाग में ठंडक मालूम होने पर कैमो औषधि लाभकारी रहती है।

मूत्राशय में दर्द-

  • रोगी को अगर मूत्राशय में दर्द होता हो तो उसे ऐकोन, इस्क्यु, ऐग्ने, एलि-सि, ऐल्यूमि, एपिस, आर्नि, बेल, बेला-ए, बार्बे, कैना-सै, कैना-ई, कैन्थ, चेलिडो, चिमा, कोलचि, यूपे-पर्पे, हेलोनि, हिपर, इपि, हिपोमि, कैलि-क्लोर, लिथि कार्ब, लाइको, मिल, नेट्रम-म्यूर, नक्स-वोमिका, पेरिरा, फास, प्लम्बम, पल्स, टैरे और टेरि औषधि देना लाभकारी रहता है।
  • अगर रोगी को पेशाब की नली में दाईं तरफ दर्द होता हो तो एलियम-सिपा, बार्बे, कैना-सै, कैन्थ, डायस्को, लाइको, नक्स-वोमिका, डलि, सार्सा औषधियों में से कोई भी औषधि लेना अच्छा रहता है।
  • रोगी के पेशाब की नली में बाईं तरफ दर्द होता है तो बार्बे, हिपोमि, लाई, पेरिरा औषधि लेना लाभदायक रहता है।
  • अगर पेशाब की नली का दर्द उरु में और दोनो पैरों में फैल जाता है तो रोगी को पेरिरा औषधि देने से लाभ मिलता है।
  • अगर पेशाब की नली का दर्द अण्डकोष में फैल जाता है तो रोगी को सिफि औषधि देनी चाहिए।
  • अगर पेशाब की नली का दर्द उरु में होता है तो नक्स-वोमिका औषधि लाभकारी रहती है।
  • पेशाब की नली का दर्द दाएं उरु से होने पर नक्स-वोमिका लाभकारी रहती है।
  • रोगी के पेशाब की नली का दर्द लिंग और अण्डकोष में पहुंच जाता है तो कैन्थ, कोना, डाय और नक्स-वोमिका औषधि लाभकारी रहती है।
  • पेशाब की नली का दर्द सीने की जड़ में पहुंचने पर रोगी को हाइड्रो-एसिड औषधि देने से लाभ मिलता है।
  • अगर रोगी के पेशाब की नली का दर्द पेशाब करते समय उरुदेश में पहुंच जाता है तो रोगी को बार्बे औषधि देना लाभकारी रहता है।
  • अगर पेशाब की नली का दर्द मूत्राशय के चारों तरफ फैल जाता है तो रोगी को बार्बे औषधि देना लाभकारी रहता है।
  • अगर पेशाब की नली का दर्द नीचे की तरफ होता हो तो रोगी को सार्सा औषधि देनी चाहिए।
  • अगर स्त्री के मासिकस्राव आने की शुरूआत में पेशाब की नली में दर्द होता है तो उसे बार्बे, रैफे और विरे औषधि देनी चाहिए।
  • अगर नाक छिनकने पर पेशाब की नली में दर्द होता है तो रोगी को कैल्क-फास औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी के बैठे रहने पर पेशाब की नली में दर्द होता है तो पैले, टैरि औषधि लाभकारी रहती है।
  • घूमने के समय पेशाब की नली में दर्द होने पर रोगी को किल्मे औषधि देनी चाहिए।
  • रोगी के बैठे रहने पर पेशाब की नली में दर्द होने पर पैल, टैरि या पैले औषधि बहुत लाभ करती है।
  • पेशाब करते समय या पेशाब करने के लिए जोर लगाने पर पेशाब की नली में दर्द होने पर रोगी को आर्स-आ, फेरम, ग्रैफा, मर्क-कोर और रूटा औषधि का सेवन कराना लाभकारी रहता है।
  • अगर रोगी के हंसने पर पेशाब की नली में दर्द होता है तो उस समय ऐलि-सैटा, आर्स-हायो, ब्रायो, कैल्के-फास, कैना-इ, कैन्थ, चेलि, चिमा, कोपे, फेरम, कैलि-नाई, लोबे, मिलि, आक्जैलिक-ए, फास, फाइटो, प्लम्ब, रस-टाक्स, सार्सा या टेरि औषधि को लेने से लाभ मिलता है।
  • अगर रोगी के मूत्राशय प्रदेश में दर्द होता है तो उसे ऐलि-सैटा, आर्स-हायो, ब्रायो, कैल्के-फास, कैना-इ, कैन्थ, चेलि, चिमा कोपे, फेरम, कैलि-नाई, लोबे, मिलि, आकजैलिक-ए, फास, फाइटो, प्लम्ब, रस-टाक्स, सार्सा या टेरि औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी के कुछ भारी चीज उठाने के समय मूत्राशय प्रदेश में दर्द होता है तो उसे कैल्क औषधि देने से आराम मिलता है।
  • रोगी के झुकने पर मूत्राशय प्रदेश में दर्द होने पर सल्फ औषधि लाभ करती है।
  • अगर रोगी के पेशाब करने के समय मूत्राशय में दर्द होता है तो उसे इस्कि, इग्ने, एण्टिम-क्रूड या बार्बे औषधि का सेवन कराना लाभकारी रहता है।
  • रोगी के पेशाब की मात्रा कम होने पर अगर मूत्राशय में दर्द होता है तो लाइको या टेरि में से कोई भी औषधि लाभ करती है।
  • अगर रोगी के मूत्राशय में काटता हुआ दर्द हो रहा हो तो उसे ऐकोन, आज-नाई, आर्नि, बार्बे, कैन्थ, कोलोसि, कैलि-बाई, कैलि-आयोड, मर्क या स्टैफि औषधि देना लाभकारी रहता है।
  • अगर मूत्राशय का दर्द गर्मी से घटता है और ठंड से बढ़ता है तो रोगी को स्टैफि औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी के मूत्राशय में पेशाब करने से पहले दर्द होता हो तो उसे ग्रैफा औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी के मूत्राशय में पथरी हो तो उसे बेल, बार्बे कैन्थ, कोलोसि, इकुई लिथि-का, लाइको, मिलि, ओसिमम, पेरिरा, फास, सार्सा औषधि देने से लाभ मिलता है।

मूत्राशय में जलन-

  • अगर रोगी के मूत्राशय में जलन हो तो उसे ऐकोन, ऐलियम-सिपा, एपिस, आर्निका, एसिक्ल, बेल, बेलो-ए, ब्रायो, बार्बे, कैना-सेट, कैन्थ, कैप्सि, कार्बा-ए, चेलिडों, चिना, कोलचि, इरिजि, इयुपे-पर्फ, जेल्स, हेलोनि, कैलि-कार्ब, कैलि-क्लोर, कैलि-आयोड, लाइको, मर्क, नक्स-वोमिका, ओसिमम, फास, फाइटो, पलिगो, सार्सा, साइलि, सल्फ, टेरि या थूजा औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी के मूत्राशय में जलन के साथ पीब पैदा हो तो रोगी को आर्स, हिपर, मक या साइलि औषधि देनी चाहिए।
  • रोगी के मूत्राशय में खून की खराबी के कारण जलन हो तो रोगी को क्रोटे-होर औषधि देना लाभकारी रहता है।
  • अगर रोगी की रीढ़ की हड्डी में किसी तरह की चोट लग जाने के कारण मूत्राशय में जलन हो तो रोगी को आर्नि, रस-टाक्स या टेरे औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को पसीने आने के साथ मूत्राशय में जलन हो तो रोगी को ऐकोन, एपिस, आर्स, कैम्फ, डल्का, हाइयों, ओपियम, पल्स, स्ट्रैमो या सल्फ औषधि देने से आराम मिलता है।
  • अगर किसी रोगी का पेशाब बंद हो जाने के कारण मूत्राशय में जलन हो तो रोगी को ऐकोन, एपिस, इथू, आइलैन्थ, ऐन्थ्रा, आर्नि, आर्स, आरम-ट्रि, बेल, कैक्ट, कैम्फ, कैन्थ, कार्बो-ए, कार्बा-वेज, कास्टि, सिकि, कोलचि, क्रोटेलस-हो, क्यूप्रम, डिजि, इलाटे, इरिजि, यूपे-पर्पि, हेलि, हाइड्रो, हाइयो, कैलि-बाई, लैके-कै, लैकसिस, लोरो, लाइको, मर्क-कोर, मार्फि, ओपि, फास, प्लम्बम, पोडो, पल्स, रोबि, सिके, साइलि, स्ट्रैमो या बिरी औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी के मूत्राशय में खिंचाव के साथ जलन हो तो रोगी को क्यूप्रम, डिजि, हाइयो या स्ट्रैमो औषधि देना लाभकारी रहता है।
  • अगर रोगी को सुजाक रोग होने के कारण मूत्राशय में जलन होती हो तो उसे कैम्फ या कैन्थ औषधि देना लाभकारी रहता है।

बुखार :

  • रोगी को अगर अनियमित बुखार अर्थात कभी आने वाला और कभी जाने वाला बुखार हो तो उसे आर्स, कार्बा-वेज, युपेपर्फो, इपि, इग्ने, मिनि, नक्स-वोमिका, पल्स या सिपिया औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को अविराम ज्वर अर्थात लगातार रहने वाला बुखार, टाइफायड या टाइफस आदि बुखार हो तो उसे आर्स, एरम-ट्रि, बैप्टी, ब्रायो, कैन्थ, कैप्सि, कार्बो-ऐनि, चायना, चिनि-आ, चिनि-स, क्लोरे, काक्यु, कोलचि, क्रोटे-होर, इचिने, जेल्स, हेलि, हाइयो, लैके, लाइको, मस्क, म्यू-ए, नाइट्रि-ए, नक्स-वोमिका, ओपि, फास-ए, फास, सोरि, पल्स, रस-टाक्स, रस-वेन, सिके, साइलि, स्ट्रैमो, सल्फ-ए, टेरि औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को दिन के तीसरे पहर में बुखार आता हो तो उसे आर्स, ब्रायो, कैन्थ, जेल्स, हाइयो, लैके, नाइट्रि-ए, नक्स-ए, नक्स-वोमिका, फास, पल्स, रस या सल्फ औषधि देने से लाभ मिलता है।
  • रोगी को अगर शाम के 4 बजे से लेकर रात के 8 बजे तक बुखार होता हो तो उसे लाइको औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को अविराम ज्वर अर्थात लगातार रहने वाला बुखार शाम 4 से 8 बजे के बीच में या आधी रात में आता हो तो उसे स्ट्रैमो औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को अविराम ज्वर अर्थात लगातार रहने वाला बुखार रोजाना शाम के समय बढ़ जाता है तो रोगी को आर्स, ब्रायो, कार्बा-वेज, कैमो, लैके, लाइको, म्यूर-ए, फास-ए, फास, पल्स, रस-टाक्स या सल्फ औषधि देने से लाभ मिलता है।
  • रोगी को  अविराम ज्वर अर्थात लगातार रहने वाला बुखार शाम के समय 7 बजे आता हो तो रोगी को लाइको या रस-टाक्स औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को अविराम ज्वर अर्थात लगातार रहने वाला बुखार रात 9 बजे से 12 बजे तक रहता हो तो उसे ब्रायो औषधि देना लाभकारी रहता है।
  • रोगी को अविराम ज्वर अर्थात लगातार रहने वाला बुखार अगर रात 10 बजे तक आता हो तो उसे लैके औषधि देना लाभकारी रहता है।
  • अगर रोगी को अविराम ज्वर अर्थात लगातार रहने वाला बुखार रात में तेज होता है तो उसे आर्स, बैप्टो, ब्रायो, कार्बा-वेज, चायना, चिनि-आर्स, कोलचि, लैके, कैलि-बा, मर्क, म्यूर-ए, नक्स-वोमिका, ओपि, फास-ए, फास, पल्स, रस-टाक्स, स्ट्रैमो या सल्फ औषधि देना अच्छा रहता है।
  • रोगी को अगर अविराम ज्वर अर्थात लगातार रहने वाला बुखार रात में तेज हो जाता हो तो बेल, ब्रायो, हाइयो, रस-टाक्स या स्ट्रैमो औषधि लाभकारी रहती है।
  • अगर रोगी को पेट में किसी खराबी के कारण बुखार होता है तो उसे आर्स, बैप्टी, ब्रायो, कोलचि, लाइको, म्यूर-ए, नाइट्रिक-ए, फास-ए, फास, रस-टाक्स, सिके, सल्फ या टेरि औषधि देने से लाभ मिलता है।
  • अगर बुखार शरीर में किसी तरह के फोड़े-फुंसियों के कारण होता है तो रोगी को आइलेन्थिस, एपिस, बेल, ब्रायो, पुफ्रे, लैके, मर्क, फास, रस-टाक्स या सल्फ औषधि का सेवन कराना अच्छा रहता है।
  • अगर रोगी को लकवा मार जाने के कारण फेफड़ों में बुखार हो जाता है तो उसे ऐण्टिम-टार्ट, आर्स, कार्बो-वेज, लाइको, फास या सल्फ औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को आने वाला बुखार दिमाग से सम्बंधित होता है तो उसके लिए ऐपिस, बैप्टी, ब्रायो, जेल्स, हाइयो, लैके, लाइको, ओपि, फास, रस-टाक्स या स्ट्रैमो औषधि लाभकारी रहती है।
  • अगर रोगी को लकवा मार जाने की आशंका के साथ दिमाग में बुखार चढ़ जाता है तो उसके लिए हेलिबोरस, लैके, लाइको, ओपि, फास-ऐ, फास या जिंक औषधि अच्छी रहती है।
  • अगर रोगी को छाती में किसी रोग के कारण बुखार आता हो तो उसे ऐण्टिम-टार्ट, ब्रायो, कार्बो-वेज, हाइयो, लाइको, फास, रस-टाक्स या सल्फ औषधि देनी चाहिए।
  • अगर बुखार आने से पहले ही रोगी को लगने लगता है कि बुखार आने वाला है तो उसके लिए ऐण्टिम-टा, आर्स, बेल, ब्रायो, चिनि-सल्फ, चायना, इयुपे-पर्फो, गैम्बो, इग्ने, नेट्रम-म्यूर या नक्स-वोमिका औषधि लाभकारी रहती है।
  • अगर रोगी के आधे शरीर में बुखार आता हो तो उसे ऐल्यूमि, बेल, ब्रायो, कास्टिक, कैमो, डिजि, ग्रैफा, कैलि-कार्ब, लाइको, मस्क, नक्स-वोमिका, पेरिरा, फास, जेल्स, रस-टाक्स, सल्फ या टैरे औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी के शरीर के दाएं भाग में बुखार होता है तो उसे बेल, ब्रायो, कैमो, नक्स-वोमिका, पेरिरा, फास, जेल्स, रस-टाक्स, सल्फ या टैरे औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी के शरीर के बाएं भाग में बुखार होता है तो उसे लाइको, मेजे, प्लाटि, रैना-ब, रस-टाक्स या स्टेनम औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को साधारण बुखार में शरीर में बहुत ज्यादा गर्मी महसूस होती है तो उसे ऐकोन, ऐम्ब्रा, ऐमा, ऐण्टिम-टा, ऐपिस, आर्नि, आर्स, एरम-ट्रि, बैप्टी, बैरा-कार्ब, बेल, ब्रायो, कैक्टस, कैल्के, कैन्थ, कैप्सि, कार्बो-वेज, कैमो, चेलिडो, चायना, चिनि-स, सिना, काक्यु, काफि, कोलचि, इपि, म्यूरे, साइलका, डिजि, डल्का, इलै, इयुपे-पर्फो, फेरम-फा, फ्लु-ए, ग्रैफा, जेल्स, हेलि, हिपर, हायो, इग्ने, आइयो, इपि, कैलि-आ, लैक-कैन, लैके, लोरो, लिडम, लाइको, मैग-कार्ब, मर्क-कोर, मर्क-स, मेजे, म्यूर, नेट्रम-म्यूर, नाइट्रि-ए, नक्स-वोमिका, ओपि, फास, पोडो, पल्स, रस-टाक्स, रस-वे, सैबाई, सैम्बु, सैंगुई, सिके, सिपि, साइलि, स्पंजि, स्कूई, स्टैनम, स्टैफि, स्ट्रैमो, सल्फ-ए, सल्फ, टेरे, टेरेण्टु, बेल, वेरे या वेरे-वि औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को बुखार में सुबह के समय शरीर में बहुत ज्यादा गर्मी महसूस होती हो तो रोगी को ऐगा, एपिस, आर्नि, आर्स, बेल, ब्रायो, कैल्के, कास्टि, कैमो, चायना, इयुपे-पर्फो, हिपर, कैलि-आ, नेट्रम-म्यूर, नक्स-वोमिका, रस-टाक्स या सल्फ औषधि देना लाभकारी रहता है।
  • अगर रोगी को बुखार में दोपहर से पहले शरीर के अन्दर बहुत गर्मी महसूस होती हो तो रोगी के लिए ऐमान-कार्ब, बैप्टी, ब्रायो, कैमो, इयुपेट-पर्फ, जेल्स, मैग-कार्ब, नेट्रम-म्यूर, नक्स-वोमिका, फास, रस-टाक्स या सल्फ औषधि अच्छी रहती है।
  • अगर रोगी को बुखार आने पर शरीर में 9 बजे से 5 बजे तक गर्मी महसूस होती हो तो उसे कैलि-कार्ब औषधि देना लाभकारी रहता है।
  • अगर रोगी को बुखार के कारण शरीर में 10 बजे तक ऐसी गर्मी महसूस होती हो जैसे कि उसके शरीर पर कोई गर्म-गर्म पानी डाल रहा हो या उसकी नसों में गर्म पानी सा बह रहा हो तो रोगी को रस-टाक्स औषधि देना लाभकारी रहता है।
  • अगर रोगी को बुखार आने के कारण शरीर की गर्मी दोपहर के समय बढ़ जाती है तो रोगी को आर्स, मर्क, स्ट्रैमो या सल्फ औषधि देने से लाभ मिलता है।
  • अगर रोगी को बुखार आने पर शरीर की गर्मी दोपहर 1 बजे तक बढ़ जाती है तो रोगी को आर्स या लाइको औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को बुखार आने पर शरीर की गर्मी दोपहर 2 बजे तक तेज हो जाती हो तो उसे पल्स या रस-टाक्स औषधि देना लाभकारी रहता है।
  • अगर रोगी को बुखार आने पर शरीर की गर्मी (तीसरे पहर) शाम के समय बढ़ जाती हो तो रोगी को ऐकोन, ऐनाका, ऐडगा, ऐपिस, आर्स, ऐसाफि, बेल, ब्रायो, कैन्थ, चेलिडो, चायना, कोलचि, जेल्स, इग्ने, कैलि-कार्ब, लैक, लाइको, नेट्रम-म्यूर, नाइट्रि-ए, फास, पल्स, रस-टाक्स, रूटा, सिपि, साइलि, स्कुई, स्टैंफि या सल्फ औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को बुखार आने पर शरीर की गर्मी शाम के 4 बजे तक बढ़ जाती है तो ऐसे में रोगी को हिपर, इपि, लाइको औषधि देना लाभकारी रहता है।
  • अगर रोगी को बुखार आने पर शरीर में गर्मी शाम के समय तेज हो जाती है। ऐसे में रोगी को ऐकोन, इस्क्यु, आर्स, बैप्टी, बेल, बार्बे, कैल्के, कार्बो-वेज, कैमो, चेलिडो, चायना, सिना, हिपर, हायो, लैके, लाइको, मर्क, मेजे, फास-ए, फास-सोरि, पल्स, रस-टाक्स, सार्सा, सिपि, साइलि, सल्फ या थूजा औषधि देनी चाहिए। इन औषधियों में से कोई भी औषधि का प्रयोग लाभकारी होती है।
  • अगर रोगी को बुखार आने पर शरीर की गर्मी सिहरावन (कंपकंपी) के साथ शाम को बढ़ जाती है तो रोगी को ऐकोन, आर्स, कैमा, इलै, हिपर, साइलि या सल्फ औषधि देने से लाभ मिलता है।
  • अगर रोगी को बुखार आने पर शरीर की गर्मी शाम के 5 बजे तक बढ़ जाती है तो उसे फास, रस-टाक्स या सल्फ औषधि देना लाभकारी रहता है।
  • अगर रोगी को बुखार आने पर शरीर की गर्मी शाम को 6 बजे तक बढ़ जाती है तो रोगी को ऐण्टिम-टार्ट, चायना, हिपर, नक्स-वोमिका या रस-टाक्स औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को बुखार आने पर शरीर की गर्मी शाम को 6 बजे से लेकर 8 बजे तक बढ़ जाती है तो रोगी को लाइको, पल्स या रस-टाक्स औषधि देना लाभकारी रहता है।
  • अगर रोगी को बुखार आने पर शरीर की गर्मी शाम के 7 बजे तक बढ़ जाती है तो रोगी को लाइको, पल्स या रस-टाक्स औषधि देना लाभकारी रहता है।
  • अगर रोगी को बुखार आने पर शरीर की गर्मी शाम के 8 बजे तक बढ़ जाती है तो रोगी को ऐण्टिम-टार्ट, हिपर, फास या सल्फ औषधि देने से लाभ मिलता है।
  • अगर रोगी को बुखार आने पर शरीर की गर्मी रात को सोते समय तेज हो जाती है तो रोगी को ऐकोन, ऐल्यूमि, ऐपिस, आर्स, बैरा-कार्ब, बैप्टी, बेल, ब्रायो, कैल्के, कैन्थ, कार्बो-वेज, कैमो, सिमि, सिना, कोलचि, ड्रोसे, हिपर, कैलि-बाई, मर्क, लाइको, मर्क, मर्क-सल्फ, मार्फि, म्यू-ए, नेट्रम-ए, नाइट्रि-ए, नक्स-वोमिका, ओपि, पेट्रो, फास-ए, फास, पल्स, रस-टाक्स, सैबाडि, सिपि, साइलि, स्ट्रैमो या सल्फ औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को बुखार आने पर शरीर की गर्मी रात को सोते समय पसीने के साथ बढ़ जाती है तो ऐसे में रोगी को ऐण्टिम-क्रूड, बेल, कोलचि, मर्क, फास, सोरि, पल्स, रस-टाक्स, सिपि या सल्फ औषधि देना अच्छा रहता है।
  • अगर रोगी को बुखार आने पर शरीर में गर्मी, ठंड लगने के साथ महसूस होती हो तो ऐसे में रोगी को ऐकोन, आर्स, इला, कोलचि, कैलि-बाई, साइलि या सल्फ औषधि देना अच्छा रहता है।
  • अगर रोगी को बुखार आने पर शरीर में गर्मी बढ़ जाने के कारण रात में नींद नही आती तो रोगी बैरा-कार्ब, कैमो, ग्रैफा या हायो औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को बुखार आने पर शरीर में गर्मी के साथ प्यास ना लगे तो रोगी को ऐपिस या आर्स औषधि का सेवन कराना उपयोगी साबित होता है।
  • अगर रोगी को बुखार आने पर शरीर की गर्मी आधी रात के बाद बढ़ जाती है तो ऐसे में उसे आर्स, नक्स-वोमिका, रस-टाक्स, स्ट्रैमों या सल्फ औषधि देना लाभकारी रहता है।
  • अगर रोगी को बुखार आने के साथ-साथ आधी रात में और दोपहर में शरीर में गर्मी बढ़ जाती है तो रोगी को आर्स, इलै, स्ट्रमो या सल्फ औषधि देनी चाहिए।
  • रोगी को बुखार आने के साथ-साथ अगर आधी रात से पहले शरीर में गर्मी बढ़ जाती है तो ऐसे में रोगी को ऐकोन, ऐण्टिम,-क्रूड, आर्स, ब्रायो, कैलेडि, कार्बो-वेज, चिनि-स, लोरो, मैग-म्यूर, फास या पल्स औषधि देनी चाहिए।
  • रोगी को बुखार आने के साथ-साथ अगर आधी रात के बाद शरीर में गर्मी तेज हो जाती है तो रोगी को आर्स, कैलि-कार्ब, लाइको, रैना या सल्फ औषधि देने से लाभ मिलता है।
  • अगर रोगी को बुखार आने के साथ-साथ शरीर के ऊपर के भाग में गर्मी महसूस होती है तो ऐसे में रोगी को ऐगा, ऐनाका, आर्नि, ब्रायो, सिना, नक्स-वोमिका, पैरिरा, पल्स या रस-टाक्स औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को बुखार में शरीर के नीचे के भाग में गर्मी महसूस होती हो तो ऐसी हालत में रोगी को ओपि औषधि देने से आराम मिलता है।
  • अगर रोगी को बुखार में शरीर के पीछे के भाग में गर्मी महसूस होती हो तो ऐसे में रोगी के लिए कैमो औषधि लाभकारी रहती है।
  • अगर रोगी को बुखार में शरीर में बहुत ही ज्यादा गर्मी महसूस होती है जो रोगी के लिए बर्दाश्त करना भी मुश्किल होती है तो रोगी को ऐकोन, ऐण्टिम-टार्ट, ऐपिस, आर्नि, आर्स, एरम-ट्रि, आरम, बेल, ब्रायो, चिनि-सल्फ, कोलचि, जेल्स, हायो, लैके, लाइको, मेजे, नेट्रम-म्यूर, नेट्रम-स, नक्स-वोमिका, ओपि, फास, पल्स, रस-टाक्स, सिकै, साइलि या स्टैमो औषधि दी जा सकती है।
  • अगर रोगी को बुखार हो और सोने के बाद उसे शरीर में गर्मी बहुत ज्यादा महसूस होती हो तो रोगी को ऐण्टिम-टार्ट, लैके, मेजे, नेट्रम-म्यूर, नक्स-मस, ओपि या रस-टाक्स औषधि दे सकते हैं।
  • रोगी को बुखार आने में किसी तरह का विकार आने के साथ शरीर में गर्मी महसूस होती हो तो रोगी को ऐपिस, आर्स, बेल, ब्रायो, चिनि-सल्फ, नेट्रम-म्यूर, ओपि, पल्स या स्ट्रैमो औषधि का प्रयोग कराया जा सकता है।
  • रोगी को बुखार आने के साथ-साथ अगर उसके शरीर की गर्मी बढ़ जाती है जिसके कारण उसका सिर और चेहरा तो गर्म रहता है लेकिन उसका शरीर ठण्डा रहता है। इस तरह के लक्षणों में रोगी को आर्नि, बेल, ओपि या स्ट्रैमो औषधि देनी चाहिए।
  • रोगी को बुखार आने की अवस्था में शरीर में गर्मी ज्यादा बढ़ जाने पर अगर बहुत देर तक रहती है तो ऐसे में रोगी को ऐण्टिम-टार्ट, आर्नि, आर्स, बेल, कैक्टस, कैप्सि, जेल्स, हिपर, नक्स-वोमिका या सिके औषधि का प्रयोग कराना चाहिए।
  • अगर रोगी को शरीर में किसी तरह के फोड़े-फुंसी हो जाने के कारण बुखार आता हो तो रोगी को ऐकोन, ऐपिस, सार्स, युफ्रे, हिपर, पल्स, रस-टाक्स या सल्फ औषधि देनी चाहिए।
  • अगर स्त्री को मासिकस्राव आने के समय बुखार हो जाता है तो ऐसे में रोगी को ऐकोन, बेल, कैल्के, ग्रैफा, फास, सिपि, सल्फर औषधि दी जा सकती है।
  • अगर रोगी को पूरे शरीर में कंपकंपी के साथ बुखार आता हो तो रोगी को ऐपिस, आर्नि, बेल, कास्टि, कैमो, क्यूप्रम, ड्रोसेरा, इलै, इयुपे, पर्फ, जेल्स, हेलि, हिपर, लैके, नक्स-वोमिका, पोडो, पल्स, रस-टाक्स या सल्फ औषधि दी जा सकती है।
  • रोगी को बुखार आने के साथ-साथ अगर कंपकंपी के साथ शरीर में बहुत तेज गर्मी पैदा हो जाती है तो ऐसे में रोगी को ऐकोन, आर्स, बेल, ब्रायो, ड्रोसेरा, इले, इपि, नक्स-वोमिका, प्लैटि या काक्यु औषधि दे सकते हैं।
  • बुखार में रोगी के द्वारा ओढ़ी हुई चादर आदि को हटा देने से कंपकंपी लगने पर रोगी को आर्निका, चायना, लैके, नक्स-वोमिका, रस-टाक्स या स्ट्रैमो औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को बुखार में कंपकंपी पसीना आने और शरीर में गर्मी बढ़ जाने के साथ-साथ पैदा होती है तो ऐसे में रोगी को नक्स-वोमिका या रस-टाक्स औषधि दी जा सकती है।
  • रोगी को बुखार में चलने-फिरने के कारण अगर शरीर में कंपकंपी महसूस होती है तो रोगी को पोडो, स्ट्रैमो, एपि, आर्नि, नक्स-वोमिका देने से लाभ मिलता है।
  • अगर पेट में कीड़ों के कारण रोगी को बुखार आता हो तो ऐसे में रोगी को ऐकोन, सिकि, सिना, डिजि, फिलिक्स, हायो, मर्क, नक्स-वोमिका, सैवाडि, साइलि, स्पाई, स्टैनम, स्ट्रैमो, सल्फ या वैलेरि औषधि देनी चाहिए।
  • अगर गुस्सा आने के कारण रोगी को बुखार चढ़ जाता हो तो ऐसे में रोगी को ऐकोन, काक्यु, कोलोसि, कैमो, इग्ने, नक्स-वोमिका, पेट्रो, सिपि या स्ट्रैफि औषधि दी जानी चाहिए।
  • रोगी के कपड़े उतारने से बुखार आने पर आर्निका, आर्स, बेल, कैम्फ, कार्बो-ऐनि, कोलचि, ग्रैफा, हिपर, मैग-कार्ब, मैग-म्यूर, मर्क, नक्स-वोमिका, पल्स, रस-टाक्स, सैम्बु, साइलि, स्कूई, स्ट्रैमो या स्ट्रैफि औषधि देनी चाहिए।
  • रोगी को ठंड लगने के कारण बुखार आ जाने पर ऐकोन, आर्नि, बेल, चायना, नक्स-वोमिका औषधि देना लाभकारी रहता है।
  • रोगी को ऐसा महसूस होता है जैसे कि उसे बुखार है और कुछ समय के बाद उसे सच में ही बुखार आ जाता है। ऐसे में रोगी को ऐकोन, ऐपिस, आर्निका, आर्स, चायना, काफि, युफ्रे, फेरम, हिपर, इग्ने, लैके, मेग-कार्ब, मस्क, म्यूर-ऐ, नाइट्रिक-एसिड, ओपि, फास, प्लैटि, पेट्रो, पल्स, सिके, स्टैफि या सल्फ औषधि देनी चाहिए।
  • रोगी को गर्मी के मौसम में बुखार आने पर आर्स, बेल, ब्रायो, कैल्के, कैप्सि, इपि, जैल्स, लैके, नेट्रम-म्यूर, सल्फ, थूजा या वेरे औषधि देना लाभकारी रहता है।
  • अगर रोगी को बुखार होने के साथ-साथ शरीर में जलन पैदा करने वाली गर्मी भी बढ़ जाती हो तो रोगी को ऐकोन, ऐपिस, आर्स, बेल, ब्रायो, कार्बो-वेज, कैमो, सिना, डल्का, इले, पल्स, हिपर, लाइको, मर्क-कोर, नक्स-वोमिका, ओपि, फास, पल्स, रस-टाक्स, सैम्बु, सिकेलि या सल्फ औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को बुखार होने के साथ-साथ शरीर में जलन पैदा करने वाली गर्मी सुबह के समय बढ़ती हो तो ऐसे में रोगी को ब्रायो या कैमो औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को बुखार होने के साथ-साथ शरीर में जलन पैदा करने वाली गर्मी दोपहर से पहले बढ़ जाती हो तो रोगी को नेट्रम-म्यूर, नक्स-वोमिका या फास औषधि दी जा सकती है।
  • अगर रोगी को बुखार होने के साथ-साथ शरीर में जलन पैदा करने वाली गर्मी सुबह के 9 बजे से लेकर 12 बजे तक बढ़ती है तो रोगी को कैमो औषधि देना लाभकारी रहता है।
  • अगर रोगी को बुखार होने के साथ-साथ शरीर में जलन पैदा करने वाली गर्मी शाम के समय बढ़ती हो तो ऐसे में रोगी को आर्स, बेल, ब्रायो, हिपर, फास या सल्फ औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को बुखार होने के साथ-साथ शरीर में जलन पैदा करने वाली गर्मी शाम के 7 बजे से लेकर पूरी रात तक रहती है तो ऐसी अवस्था में रोगी को हिपर औषधि देने से लाभ मिलता है।
  • अगर रोगी को बुखार होने के साथ-साथ शरीर में जलन पैदा करने वाली गर्मी शाम के समय बढ़ जाती है तो ऐसे में रोगी को ऐकोन, आर्स, बेल, ब्रायो, कार्बो-वेज, कैमो, हायो, लाइको, मर्क-कोर, फास, रस-टाक्स या औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को बुखार होने के साथ-साथ शरीर में जलन पैदा करने वाली गर्मी रात में बढ़ जाती है तो ऐसे रोगी को ऐकोन, आर्स, बैप्टी, बार्वे, बेल, ब्रायो, कैक्ट, कार्बो-वे, कैमो, हिपर, ओपि, फास, पल्स, रस-टाक्स या स्ट्रैमो औषधि दी जा सकती है।
  • अगर रोगी को बुखार होने के साथ-साथ शरीर में जलन पैदा करने वाली गर्मी आधी रात में बढ़ जाती हो तो ऐसे रोगियों को आर्स या रस-टाक्स औषधि दी जा सकती है।
  • अगर रोगी को बुखार होने के साथ-साथ शरीर में जलन पैदा करने वाली गर्मी आधी रात से पहले बढ़ जाती है तो ऐसे में रोगी को ब्रायो या कैमो औषधि देने से लाभ मिलता है।
  • अगर रोगी को बुखार होने के साथ-साथ शरीर में जलन पैदा करने वाली गर्मी शरीर के अन्दर पहुंच जाए जैसे कि नसों के बीच में जलन पैदा हो रही हो तो रोगी को आर्स, ब्रायो या रस-टाक्स औषधि दी जा सकती है।
  • अगर रोगी को डेंगू का बुखार हो तो रोगी को ऐकोन, बेल, इयुपे-पर्फो, जेल्स, रस-टाक्स या रस-वे औषधि दी जा सकती है।
  • स्त्रियों के स्तनों में दूध जम जाने के कारण होने वाले बुखार में ऐकोन, आर्नि, बेल, ब्रायो, कैमो, काफि, इग्ने, मर्क, ओपि या रस-टाक्स औषधि देने से लाभ मिलता है।
  • अगर रोगी को बुखार धीरे-धीरे से शरीर में आता हो तो ऐसे रोगी को आइलेन्थ, आर्निका, आर्स, बैप्टी, कैम्फ, लैके, म्यूर-एसिड, फास-ए, फास या रस-टाक्स औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को बहुत तेज ठंड लगने के साथ-साथ बुखार चढ़ता हो तो ऐसी अवस्था में रोगी को ऐग्नस, ऐमोन-म्यूर, ऐण्टिम-टार्ट, आर्स, बैप्टी, बैरा-कार्ब, बेल, ब्रायो, कैल्के, कैमो, चायना, काफि, डिजि, इस्क्यू, हेलि, हिपर, हायो, इग्ने, क्रियो, लोरो, लाइको, मैग-म्यूर, मर्क, नक्स-वोमिका, फास, रस-टाक्स, सैंगुइ, सिके, साइलि, सिपि, सल्फ, वेरे या जिंक औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को लक्षण बदल-बदल कर बुखार आता हो तो ऐसे में रोगी को इलैट, इग्ने, पल्स या सिपि औषधि दी जा सकती है।
  • अगर रोगी को आने वाला बुखार आमाशय से सम्बंधित हो तो ऐसे रोगियों को ऐकोन, ऐण्टिम-क्रूड, ऐण्टिम-टार्ट, आर्स, बेल, ब्रायो, कार्बो-वेज, कैमो, चायना, कोलोसि, जेल्स, इपि, मर्क, नक्स-वोमिका, फास, पोडो, पल्स, रस-टाक्स, सिकेलि, सल्फ या विरे औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को बुखार आने पर शरीर के अन्दर बहुत ज्यादा गर्मी महसूस होती है तो ऐसे में रोगी को ऐकोन, आर्नि, आर्स, बेल, ब्रायो, कास्टि, कैमो, मैग-कार्ब, फास-ए, फास, पल्स, रस-टाक्स या सैबाडि औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को बुखार आने पर शरीर के अन्दर गर्मी बढ़ने से जलन पैदा हो जाती है तो रोगी को आर्स, कैप्सि, बेल, मस्क या सिके औषधि देने से लाभ मिलता है।
  • रोगी को बुखार आने पर शरीर में गर्मी बढ़ जाए लेकिन शरीर छूने पर बिल्कुल ठण्डा महसूस हो तो ऐसे रोगियों को कार्बो-वेज या फेरम औषधि देनी चाहिए।
  • रोगी को मलेरिया का बुखार होने पर आर्नि, कैडमि, कार्बो-ऐनि, चिनि-सल्फ, चायना, चेलिडो, इयुके, इयुपे-पर्फो, जेल्स, एपि, मैले-आ, नेट्रम-सल्फ, नक्स-वोमिका, सोरि, सल्फ-ए, टेरि या वेरे-वि औषधि देने से लाभ मिलता है।
  • अगर रोगी को बुखार में ठंड नही लगती तो उसे ऐनाका, ऐड्राग, ऐपिस, आर्स, बैप्टी, बेल, ब्रायो, कैल्के, कैमो, चायना, सिना, फेरम-फास, जेल्स, इपि, ल्यूको, नक्स-वोमिका, रस-टाक्स, स्ट्रैमो, सल्फ या थूजा औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को बुखार में सुबह के समय ठंड नहीं लगती तो उसे आर्नि, आर्स, ब्रायो, कैल्के, कास्टि, युपे-पर्फो, हिपर, नेट्र-म्यूर, रस-टाक्स, सल्फ या थूजा औषधि देना लाभकारी रहता है।
  • अगर रोगी को बुखार में दोपहर के पहल ठंड नहीं लगती है तो ऐसे रोगियों को कैमो, जेल्स, नक्स-वोमिका, रस-टाक्स या सल्फ औषधि दी जा सकती है।
  • अगर रोगी को बुखार में दिन के 9 बजे से 12 बजे तक ठंड महसूस नहीं होती तो ऐसे में रोगी को कैमो औषधि देनी चाहिए।
  • रोगी को बुखार आने पर अगर दोपहर के 1 बजे तक ठंड नहीं लगती तो उसे जेल्स, नेट्रम-म्यूर या रस-टाक्स औषधि देने से लाभ मिलता है।
  • अगर रोगी को बुखार आने पर दोपहर के 12 से 1 बजे तक ठंड महसूस नहीं होती तो रोगी को नेट्रम-म्यूर या थूजा औषधि देना लाभकारी रहता है।
  • अगर रोगी को बुखार आने पर शाम के समय ठंड नहीं लगती तो रोगी को आर्स, बेल, जेल्स, पल्स, रस, साइलि औषधि देने से लाभ मिलता है।
  • अगर रोगी को बुखार हो तथा बुखार का असर दोपहर के 1 बजे से 2 बजे तक रहें और ठंड महसूस न हो तो ऐसे में रोगी के रोग को ठीक करने के लिए आर्स औषधि का उपयोग किया जाता है।
  • अगर रोगी को बुखार आने पर दोपहर के 2 बजे तक ठंड महसूस नही होती तो रोगी को पल्स औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को बुखार आने पर दोपहर के 3 बजे से 4 बजे तक ठंड महसूस नहीं होती तो ऐसे में रोगी को ऐपिस या लाइको औषधि देना लाभकारी रहता है।
  • अगर रोगी को बुखार में शाम के समय ठंड महसूस नही होती तो उसे बैप्टी, बेल, ब्रायो, कैमो, सिना, पेट्रो, पल्स, रस-टाक्स या सल्फ औषधि देना लाभकारी रहता है।
  • अगर रोगी को बुखार आने पर शाम के समय ठंड महसूस नहीं होती तो ऐसे में रोगी को नक्स-वोमिका या रस-टाक्स औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को बुखार में शाम से लेकर पूरी रात तक ठंड महसूस नहीं होती तो ऐसे में रोगी को कैल्के या नक्स-वोमिका औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को बुखार में शाम को 9 बजे तक ठंड महसूस नहीं होती तो ऐसे रोगी को कैल्के या नक्स-वोमिका औषधि दी जा सकती है।
  • अगर रोगी को बुखार में शाम से लेकर रात तक ठंड महसूस नहीं होती तो ऐसे रोगी को आर्स, बैप्टी, बेल, ब्रायो, कैल्के, कार्बो-वेज, सिना, कैलि-बाई, फास, पल्स, रस-टाक्स या सल्फ औषधि देने से रोग में लाभ होता है।
  • अगर रोगी को बुखार में रात के 10 बजे तक ठंड महसूस नहीं होती तो ऐसे रोगी को आर्स या हाइड्रो देना लाभकारी रहता है।
  • अगर रोगी को बुखार में रात के 12 बजे से 2 बजे तक ठंड महसूस नहीं होती तो ऐसे में रोगी को आर्स औषधि देने से आराम मिलता है।
  • अगर रोगी को बुखार में रात के 12 से 3 बजे तक ठंड महसूस नहीं होती तो ऐसे में रोगी को आर्स या कैलि-कार्ब औषधि देना लाभदायक रहता है।
  • रोगी को बुखार में रात के 1 से 2 बजे तक ठंड महसूस नहीं होती तो ऐसे में रोगी को आर्स औषधि दी जा सकती है।
  • अगर रोगी को बुखार में रात के 2 बजे तक ठंड महसूस नहीं होती तो ऐसी अवस्था में उसे आर्स या बेल्को-ए औषधि दी जा सकती है।
  • अगर रोगी को ठंड के साथ बुखार आता है तो रोगी को ऐकोन, आर्स, बेल, ब्रायो, कैल्के, कैमो, चेलिडो, डिजि, फेरम, हेलि, इग्ने, मर्क, मेजे, नाइट्रिक-ए, नक्स-वोमिका, ओलिये, प्लम्बम, पोड़ो, पल्स, रस-टाक्स, सैंगु, सिपि, स्ट्रैमो, सल्फ, थूजा, वेरे या जिंक औषधि देनी चाहिए।
  • रोगी को अगर बुखार आने पर कंपकंपी के साथ ठंड महसूस होती है तो ऐसे में रोगी को ऐपिस, आर्नि, बेल, कास्टि, काफि, इलै, कैलि-कार्ब, मर्क, पोडो, पल्स, सिपि, स्पाइजि, स्कुई, सल्फ, थूजा या वेरे या जिंक औषधि दी जा सकती है।
  • अगर रोगी को बुखार आने पर काफी देर तक ठंड लगने के बाद शरीर में गर्मी महसूस हो तो ऐसे में रोगी को पोडो औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को बुखार में सोते समय रजाई या कंबल आदि में हाथ बाहर निकालने पर ठंड महसूस हो तो रोगी को वेरा-कार्ब, बोरा, हिपर, नक्स-वोमिका या स्ट्रैमो औषधि देना लाभदायक रहता है।
  • अगर रोगी को बुखार में सर्दी लगने के कारण ठंड महसूस होती हो तो ऐसे में रोगी को ऐकोन, आर्स, ब्रायो, कार्बो-वेज, कोना, फेरम-फास, हिपर, कैलि, आयोड, लैके, मर्क, फास-ऐ, रस-टाक्स, सैबाडि या सिपि औषधि देना लाभदायक रहता है।
  • अगर रोगी को रुक-रुक कर आने वाला बुखार पुराना हो तो ऐसे रोगी को आर्स, कैल्के, कैल्के-फास, कार्बो-वेज, हिपर, लाइको, नेट्रम-म्यूर, नक्स-वोमिका, सिपि, साइलि या सल्फ औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को सविराम ज्वर नया हो तो उसे आर्स, बैप्टी, ब्रायो, चिनि-स, चायना, जेल्स, इग्ने, नेट्रम-म्यूर या नक्स-वोमिका औषधि दी जा सकती है।
  • अगर रोगी को सविराम ज्वर जिगर के बढ़ने के साथ-साथ आता हो तो ऐसे में रोगी को लाइको, नेट्रम-म्यूर या नाइट्रिक-ए औषधि देनी चाहिए।

ठंड, गर्मी और पसीने की अवस्था का आपस में संबंध-

  • अगर बुखार का संबंध रोगी को ठंड लगने के बाद गर्मी से हो तो ऐसे में रोगी को ऐकोन, ऐल्यूमि, ऐण्टिम-टा, आर्नि, बेल, कार्बो-वेज, चायना, सिना, कोलचि, ड्रोसेरा, युपे-पर्फ, ग्रेफा, हिपर, हायो, आयो, इग्ने, इपि, लाइको, मैग-कार्ब, मर्क-कोर, नेट्रम-कार्ब, नेट्रम-म्यूर, नक्स-वोमिका, ओपि, पेट्रो, फास, पल्स, रस-टाक्स, सिके, स्पाइजि, स्ट्रैमो, सल्फ या बेल औषधि दी जा सकती है।
  • अगर रोगी को बुखार में ठंड लगने के बाद पसीने के साथ आता हो तो ऐसे में रोगी को ऐकोन, बेल, ब्रायो, कैप्सि, कैमो, चायना, फेरम, नक्स-वोमिका, ओपि, पल्स, रस-टाक्स, सैबाडि या सल्फ औषधि देना लाभकारी रहता है।
  • अगर रोगी को बुखार में ठंड लगने के बाद पसीना आता हो तो ऐसे में रोगी को आर्स, बेल, ब्रायो, चायना, इयुपे-पर्फो, ग्रैफा, इग्ने, लैके, नेट्रम-म्यूर, नक्स-वोमिका, पल्स, रस-टाक्स, सैबाडि, सल्फ या वैरे औषधि दी जा सकती है।
  • अगर बुखार के रोगी को बहुत ज्यादा ठंड लगने के बाद ही पसीना आए तो उसे ब्रायो, कैप्सि, कार्बो-एनि, कास्टि, क्लिमे, डिजि, लाइको, मेजे, ओपि, पेट्रो, रस-टाक्स, थूजा और वेरे औषधि का प्रयोग करना लाभकारी रहता है।
  • अगर रोगी को बुखार में शरीर में गर्मी बढ़ जाने के बाद ठंड महसूस होती हो तो ऐसे में रोगी को बेल, ब्रायो, कैल्के, कास्टि, हेलि, नाई-ए, नक्स-वोमिका, पल्स, कैमो, सिपि, स्ट्रैनम या स्टैफि औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को बुखार में शरीर में गर्मी बढ़ जाने के बाद पसीना आता हो तो ऐसे रोगी को ऐमोन-म्यूर, आर्स, कैमो, काफि, चायना, इग्ने, इपि, मैग, नक्स-वोमिका, रैनान-कुल, रस-टाक्स, साइलि या वेरे औषधि दी जा सकती है।
  • अगर रोगी को बुखार में शरीर में गर्मी बढ़ जाने के बाद शरीर में ठण्डा महसूस होता हो तो ऐसे में रोगी को वेरे औषधि देनी चाहिए।
  • स्त्री के प्रसव के बाद आने वाले बुखार में बैप्टी, ब्रायो, फेरम, लैके, लाइको, नक्स-वोमिका, फास, पल्स, रस-रेड, रस-टाक्स या सल्फ औषधि लाभकारी रहती है।
  • रोगी को सेप्टीक फीवर (विषाक्त बुखार) होने पर ऐसे-ए, ऐन्थ्रा, ऐपिस, आर्नि, आर्स, बेल, बैप्टी, ब्रायो, कैडमि, कार्बो-वेज, क्यूरे, कार्बो-वेज, क्रोटेलस-होर, ऐकिने, कैलि-फास, लैकेसिस, लाइको, मर्क, म्यूर-ए, ओपि, फास, फास-ए, पल्स, पाइरो, रस-टाक्स, रस-वे, सल्फ, सल्फ-ए, टैबे या टेरि औषधियों में से कोई भी औषधि देनी चाहिए।
  • अगर रोगी को सेरिब्रो स्पाइनल ज्वर हो तो उसे ऐकोन, एण्टि-टा, एपिस, आर्ज-नाई, आर्नि, आर्स, बैप्टी, बेल, ब्रायो, सिकि, सिमि, क्रोटे-हो, क्यूप्रम, जेल्स, ग्लोनो, हायो, इग्ने, नेट्रम-म्यूर, नेट्रम-स, नक्स-वोमिका, ओपि, फास, रस-टाक्स, वेरे-वि या जिंक औषधि लाभदायक रहती है।
  • रोगी को स्वल्प-विराम बुखार (रेमिटटेन फीवरद्ध आने पर ऐकोनाइट, एण्टि-टा, बेल, ब्रायो, कैमो, चायना, जेल्स, इपि, लैके, लाइको, मर्क, नेट्रम-स, नक्स-वोमिका, पोडो, पल्स, रस-टाक्स या सल्फ औषधि देना लाभकारी रहता है।
  • अगर रोगी को स्वल्प-विराम बुखार सुबह के समय आता है तो ऐसे में रोगी को आर्नि, ब्रायो, रस-टाक्स या सल्फ औषधि देना लाभदायक रहता है।
  • अगर रोगी को स्वल्प-विराम बुखार शाम के समय आता हो तो उसे आर्स, बेल, ब्रायो, जेल्स, लैक, लाइको या नक्स-वोमिका औषधि देना लाभकारी रहता है।
  • रोगी को आने वाला स्वल्प-विराम बुखार शाम के समय आता है तो ऐसे में रोगी को ऐकोन, बेल, ब्रायो, लाइको, नक्स-वोमिका, फास, पल्स, रस-टाक्स या सल्फ औषधि देना लाभदायक रहता है।
  • अगर रोगी को स्वल्प-विराम बुखार रात को आता है तो ऐसे रोगी को ऐकोन, आर्स, बैप्टी, कैमो, मर्क, नक्स-वोमिका, फास, पल्स, रस-टाक्स या सल्फ औषधि देना लाभकारी रहता है।
  • रोगी को स्वल्प-विराम बुखार में अगर एक तरफ का गाल लाल और दूसरी तरफ का सफेद होता है तो ऐसे में रोगी को ऐकोन या कैमो औषधि का सेवन कराना लाभदायक रहता है।
  • अगर रोगी को स्वल्प-विराम बुखार हो और ऐसा लगता हो जैसे कि यह बुखार टाइफायड में बदल सकता है तो ऐसे में रोगी को ऐण्टिम-टार्ट, आर्स, बैप्टी, ब्रायो, म्यूर-ए, फास, रस-टाक्स या सिके औषधि देना लाभदायक होता है।
  • अगर स्वल्प-विराम बुखार बच्चों को होता है तो ऐकोन, आर्स, बेल, ब्रायो, कैमो, जेल्स, इपि, नक्स-वोमिका या सल्फ औषधि देने से लाभ होता है।
  • रोगी को टी.बी का बुखार होने पर ऐसे-ए, आर्स, आर्स-आयोड, ब्रायो, कैल्के, कैल्के-फास, कैल्के, सल्फ, कैप्सि, कार्बो-वेज, चायना, चिनिन-आर्स, क्लोरो, हिपर, आयो, इपि, कैलि-आर्स, कैलि-कार्ब, कैलि-फास, कैलि-स, लैके, लाइको, मर्क, फास-ए, फास, पल्स, पाइरो, सैंगू, सिनि, सिपि, साइलि, स्टैनम, सल्फ, टेरे, थूजा या टियूबरक्यू औषधि का सेवन लाभदायक रहता है।
  • रोगी को टी.बी. का बुखार यदि भोजन करने के बाद घट जाता है तो ऐसे लक्षणों में ऐनाका, आर्स, चायना, फेरम, इग्ने, आयो, नेट्र-कार्ब, फास, रस-ट, ट्रान्सि औषधियों में से कोई भी औषधि रोगी को देने से आराम मिलता है।
  • टी.बी. का रोग हिलने से कम होने पर रोगी को कैप्सी, लाइको, पल्स, रस या बैले औषधि देने से लाभ मिलता है।
  • रोगी का टी.बी. का बुखार भोजन करने के बाद बढ़ जाने पर रोगी को ओडो, बेल, ब्रायो, कास्टि, कैमो, लैके, लाइको, नाई-ए, नक्स--वोमिका, फास, सिपि, या सल्फ औषधि देने से आराम मिलता है।
  • अगर रोगी सोते समय ओढ़ा हुआ चादर या कंबल को हटा देता है तो उसका टी.बी का बुखार कम हो जाता है। ऐसे लक्षणों में रोगी को ऐको, कैमो, मेग-का या साइलि औषधि देनी चाहिए।
  • टी.बी. का बुखार रोगी के द्वारा गर्म चादर या कपड़ा ओढ़ने से कम होता हो तो रोगी को एकोन, एपिस, कैमो, इग्ने, लीडम, पेट्रो, पल्स, रस-टाक्स या विरे औषधियों में से कोई भी औषधि दी जा सकती है।
  • यदि रोगी को टी.बी. का बुखार हो और बुखार गर्म कमरे में कम होने पर रोगी को ऐमोन-म्यूर, एपिस, ब्रायो इरि, लाइको, पल्स या सल्फ औषधि देने से लाभ मिलता है।


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