परिचय-
छोटे-मोटे रोग जैसे खांसी, जुकाम, बुखार आदि हो तो किसी भी चिकित्सक के लिए ठीक कर देना कोई बड़ी बात नहीं है। यह सब तरुण रोग कहलाते हैं जो कुछ समय के बाद बिना इलाज के भी अपने आप चले जाते हैं। लेकिन किसी भी चिकित्सा-पद्धति की असली परख `पुराने-रोगों´ को दूर करने से होती है। ऐसे रोगों का इलाज होम्योपैथी के अलावा और किसी चिकित्सा पद्धति से नहीं हो सकता और न ही कोई चिकित्सा-पद्धति इनको पूरी तरह से ठीक करने का दावा ही करती है। छोटे-मोटे या नए रोगों का इलाज तो प्रकृति या ऐलोपैथी, आयुर्वेद चिकित्सा भी कर देती है लेकिन दमा, गठिया, मासिकधर्म की परेशानियां, टी.बी. आदि पुराने रोगों को जड़ से दूर करने का काम सिर्फ होम्यापैथिक चिकित्सा के द्वारा ही हो सकता है। होम्योपैथिक चिकित्सा अपनी शक्तिकृत औषधियों द्वारा रोगी की प्रकृति को बदल देती है रोगों को दबाती नहीं है। दूसरी चिकित्सा-पद्धतियों द्वारा इलाज करवाने पर रोग दब जाता है और किसी दूसरे रूप में बाहर निकलने की कोशिश करता है और रोगी को यही लगता है उसका रोग ठीक हो रहा है लेकिन उसका रोग ठीक न होकर दूसरे रूप में उसके शरीर में हमला कर रहा होता है। होम्योपैथिक का दावा यह है कि शक्तिकृत औषधि रोगी के अन्दर की प्रकृति को बदल देती है, उस प्रकृति को जिसके कारण रोग पैदा होता है। कोई भी रोग बाहर से नहीं आता बल्कि अन्दर से बाहर को जाता है। जीवनी-शक्ति की कमी से पैदा होता है। जब तक रोग को बिल्कुल अन्दर से समाप्त नहीं किया जाएगा तब तक रोग को दबाने की कितनी ही कोशिश क्यों न की जाए वह बार-बार ही प्रकट होता रहता है और एक रूप में नहीं बल्कि बहुत से रूपों में भी। होम्योपैथिक के अनुसार शरीर के अन्दर की जिस शक्ति के विकार से रोग बाहर के लिए चल देता है वह शक्ति स्थूल नहीं बारीक है। इस बारीक शक्ति पर प्रहार करने के लिए स्थूल उपकरण से काम नहीं चलता बल्कि बारीक उपकरण से ही उस पर प्रहार किया जाता है। यही बारीक उपकरण ही `शक्तिकृत-औषधि´ है और इसी से जीर्ण रोगों को समाप्त किया जाता है।
जीर्णरोग जो `बारीक-जीवनी-शक्ति´ की विकृति के कारण अन्दर से बाहर की तरफ आ रहा हो, उस पर प्रहार करने और उसे स्वस्थ करने का असली समय तो वह है जब बच्चे का जन्म नहीं हुआ होता अर्थात जब बच्चा मां के गर्भ के अन्दर होता है। इस समय अगर स्त्री को धातुगत-औषधि देने से वह ही नहीं बल्कि उसके गर्भ में मौजूद बच्चा भी सारे रोगों से मुक्त रहता है।
जानकारी-
जीर्णरोगों को दूर करना ही होम्योपैथी चिकित्सा का मुख्य काम है। इस चिकित्सा प्रणाली से सफलतापूर्वक इलाज करने के लिए व्यक्ति तथा औषधि की प्रकृति को जानना बहुत जरूरी है। व्यक्ति तथा औषधि की प्रकृति को मुख्यत: 2 भागों में बांटा जा सकता है- सर्द और गर्म।