परिचय-
पित्त के कारण होने वाले रोग को जानने से पहले हमें यह जानने की आवश्यकता है कि पित्त का शरीर में काम क्या है? शरीर का स्वास्थ्य ठीक प्रकार से बना रहे इसके लिए जिगर का शरीर में कम से कम आधा किलो से लेकर 1 किलो तक की मात्रा में पित्त का निर्माण करना आवश्यक होता है। इस पित्त के द्वारा ही पाचनक्रिया सही तरह से हो पाती है। यह पित्त जिगर के दाहिने भाग में स्थित थैली में जमा होती है जिसे पित्ताशय कहते हैं। पित्तनलिका जिगर से निकलकर जहां पर आंत में मिलती है, वहां पर एक ढक्कन होता है। जब आंत में भोजन को पचाने के लिए पित्त की आवश्यकता नहीं होती तब यह ढक्कन बंद हो जाता है। उस समय पित्त आंत में न जाकर रास्ते में लगी एक दूसरी नलिका जो जिगर को पित्ताशय से जोड़ती है उस पित्ताशय में पहुंचकर जमा होने लगता है और वहां से आवश्यकता पड़ने पर वह आंत में चला जाता है।
पित्त एक प्रकार का पाचक रस होता है लेकिन यह विष (जहर) भी होता है। पित्त क्षारमय (पतला रस) तथा चिकनाई युक्त लसलसा होता है तथा इसका रंग सुनहरा तथा गहरा पिस्तई युक्त होता है। पित्त का स्वाद कड़वा होता है। पाचनक्रिया में पित्त का कार्य महत्वपूर्ण होता है। यह आंतों को उसके कार्य को करने में मजबूती प्रदान करता है तथा उन्हें क्रियाशील बनाए रखता है। पित्त शरीर के अन्य पाचक रसों को भी उद्दीप्त करता है अर्थात उनकी कार्यशीलता को बढ़ा देता है। इसके अलावा पित्त एक और भी कार्य करता है। पित्त जब पित्ताशय में होता है तो उसमें सड़न रोकने की शक्ति नहीं होती है, लेकिन आंतों में पहुंचकर खाद्य पदार्थ जल्द सड़ने से रोकता है। यदि किसी प्रकार से आंतों में पित्त का पहुंचना रोक दिया जाए तो खाद्य पदार्थ बहुत ही जल्द सड़कर गैस उत्पन्न करने लगेंगे और रोग उत्पन्न हो जायेगा। यदि पेट में वायु बनने लगे तो पित्त का रोग और भी जल्दी होता है।
पित्त के रोग होने का कारण :-
- शराब, मांस, अंडे तथा तम्बाकू का सेवन करने के कारण पित्त का रोग उत्पन्न हो जाता है।
- तले हुए तेज मिर्च-मसालेदार पदार्थों का भोजन में अधिक सेवन करने से पित्त का रोग हो सकता है।
- पानी कम पीने के कारण भी पित्त का रोग हो सकता है।
- जब 1 बार किया गया भोजन न पचे और उससे पहले ही व्यक्ति दुबारा भोजन कर ले तो उसे पित्त का रोग हो सकता है।
- अधिक तनावपूर्ण जीवन तथा मानसिक रूप से परेशान रहने के कारण भी पित्त का रोग हो सकता है।
- व्यायाम न करने के कारण भी पित्त का रोग हो सकता है।
- किसी कारण से आमाशय के अंदर पित्त जमा हो जाने के कारण भी पित्त का रोग हो सकता है।
पित्त के रोग होने के लक्षण :-
- पित्त के रोग हो जाने के कारण रोगी के शरीर में गर्मी बढ़ जाती है।
- इस रोग से पीड़ित रोगी के छाती, गले तथा पेट में जलन होने लगती है।
- इस रोग के कारण रोगी के सिर में दर्द होने लगता है।
- पित्त के रोग के कारण रोगी व्यक्ति का जी मिचलाने लगता है तथा उसे उल्टियां भी होने लगती हैं।
- इस रोग से पीड़ित रोगी के पेशाब का रंग पीला हो जाता है।
- इस रोग में रोगी की जीभ पर छाले भी पड़ जाते हैं।
- इस रोग से पीड़ित रोग को खट्टी डकारें आने लगती हैं।
- इस रोग से पीड़ित रोगी को भूख बहुत ही कम लगती है।
- रोगी व्यक्ति की आंखों में जलन होने लगती है।
- पित्त रोग से पीड़ित रोगी के गले में जकड़न होने लगती है।
पित्त के रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार :-
- पित्त के रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन कम से कम 8-10 गिलास पानी पीना चाहिए।
- एक गिलास पानी में नींबू का रस निचोड़कर उसमें थोड़ी सी चीनी तथा 1 चुटकी नमक डालकर पीने से बहुत लाभ होता है। यह पानी दिन में कम से कम 8 से 10 बार पीना चाहिए।
- पित्त के रोग से पीड़ित रोगी को ठंडे दूध में चीनी डालकर पिलाना चाहिए।
- पित्त के रोग से पीड़ित रोगी को तली मसालेदार चीजें नहीं खानी चाहिए।
- इस रोग से पीड़ित रोगी को हमेशा ताजी तथा जल्दी पचने वाली चीजों का सेवन करना चाहिए।
- पित्त के रोग से पीड़ित रोगी को क्रोध तथा ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए।
- पित्त के रोग से पीड़ित रोगी को हमेशा खुश रहने की कोशिश करनी चाहिए तथा हंसते रहना चाहिए।
- पित्त के रोग से पीड़ित रोगी को भोजन में गर्म पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए बल्कि ठंडे पदार्थों को भोजन में ज्यादा से ज्यादा खाना चाहिए।
- पित्त के रोग से पीड़ित रोगी को रात को सोने से 2 घंटे पहले भोजन करना चाहिए तथा सोने से पहले मीठा दूध पीना चाहिए।
- इस रोग से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए सुबह के समय में गजकरणी क्रिया करनी चाहिए। इस क्रिया को करने के लिए 1 लीटर गुनगुने पानी में आधा चम्मच नमक मिलाकर उकड़ू या कागासन में बैठकर पूरा 1 लीटर पानी जल्दी-जल्दी पीना चाहिए ताकि पेट भरा-भरा सा लगे। इसके बाद अपना बायां हाथ पीछे की ओर कमर पर 45 डिग्री के अंश पर घुमाएं तथा दाहिने हाथ की तर्जनी या बीच की अंगुली को गले में डालकर उल्टी करें। इस क्रिया को तब तक करना चाहिए जब तक पूरा पानी बाहर न निकल जाए। इससे पूरे पेट की सफाई हो जाती है। इस क्रिया को सप्ताह में 1-2 बार करना चाहिए। जिसके फलस्वरूप पित्त का रोग ठीक हो जाता है। इस क्रिया को खाना खाने के बाद कम से कम 3 घंटे तक नहीं करना चाहिए और जितना हो सके सुबह खाली पेट कुंजल क्रिया करनी चाहिए।
- इस रोग से पीड़ित रोगी को खाना खाने के बाद वज्रासन क्रिया करनी चाहिए इससे रोगी को बहुत अधिक फायदा मिलता है।
- पित्त के रोग का उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को 3 दिनों तक उपवास रखना चाहिए तथा एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए तथा जब तक कब्ज दूर न हो अपने पेड़ू पर मिट्टी की गीली पट्टी का लेप करना चाहिए।
- इस रोग से पीड़ित रोगी को कम से कम 2-3 दिनों तक केवल फलों का रस पीना चाहिए और इसके बाद सामान्य भोजन करना चाहिए। रोगी व्यक्ति को भोजन में ताजा फल, सलाद, उबली हुई सब्जियां, मठा, दही तथा शहद का सेवन करना चाहिए।
- इस रोग से पीड़ित रोगी के जिगर के भाग पर मालिश करनी चाहिए।
- रोगी को जिगर पर बारी-बारी से गरम तथा ठंडा सेंक करना चाहिए तथा स्थानीय वाष्पस्नान करना चाहिए। इस प्रकार से यदि रोगी प्रतिदिन उपचार करें तो उसका यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
- इस रोग से पीड़ित रोगी को पीले रंग की बोतल का सूर्यतप्त जल 25 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन कम से कम 6 बार सेवन करना चाहिए। जिसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।
- रोगी व्यक्ति को सुबह के समय में गहरी सांस लेने वाली कसरतें करनी चाहिए।
- इस रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन सुबह तथा शाम के समय में खुली हवा में 1 घंटे तक टहलना चाहिए।
- रोगी व्यक्ति को उपचार कराते समय स्नान करने से पहले एक बार सूखा घर्षण स्नान करना चाहिए। इसके बाद प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करना चाहिए। जिसके फलस्वरूप यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
- प्रतिदिन सुबह के समय में पश्चिमोत्तानासन तथा भुजंगासन करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
जानकारी-
इस प्रकार से पित्त रोगी का कुछ दिनों तक प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार किया जाए और कुछ चीजों से परहेज रखा जाए तो उसका यह रोग ठीक हो जाता है तथा पाचनशक्ति भी मजबूत हो जाती है।