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गहरी नींद

    आयुर्वेद के अनुसार जिन व्यक्तियों को रात में गहरी नींद आती है तथा वह सुबह के समय 4 बजे अपना बिस्तर छोड़ देते हैं तो इससे उनके शरीर की सभी धातुएं साम्यावस्था में रहती हैं। उन्हें किसी भी प्रकार का आलस्य नहीं होता है तथा उनका शरीर हृष्ट-पुष्ट रहता है। इससे उनके शरीर की सुन्दरता बढ़ती है, उत्साह बढ़ता है तथा उनकी जठराग्नि प्रदीप्त होती है और उन्हें भूख खुलकर लगती है।

          यदि हम केवल कार्य ही करते रहें और नींद न लें तो एक समय ऐसा आएगा कि हम शारीरिक और मानसिक रूप से किसी भी कार्य को करने के अयोग्य हो जाएंगे। ऐसी दशा में या तो हम पागल हो जाएंगे अथवा मर जाएंगे। महिलाएं अपने बच्चों के सो जाने पर जगाकर दूध और भोजन इसलिए कराती हैं कि उनके बच्चे भूखे सो गये हैं। लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम होता है कि उनके भूख और भोजन से भी अधिक लाभकारी निद्रा होती है। इसी प्रकार छात्र-छात्राएं विभिन्न तरीकों से अपनी नींद को त्यागकर रात भर अध्ययन करते रहते हैं। ऐसा करने से उन विद्यार्थियों की आंखें दुर्बल हो जाती हैं और उनका मस्तिष्क भी कुंठित हो जाता है। इससे उनका प्राकृतिक स्वास्थ्य नष्ट हो जाता है। नींद के सम्बन्ध में एक कहावत प्रसिद्ध है कि वे व्यक्ति बहुत कुछ कर सकते हैं जो खूब अच्छी प्रकार से सोना जानते हैं।

गहरी नींद क्या है?

          गहरी नींद वह होती है जिसमें व्यक्ति एक जीवित प्राणी चेतनाशून्य होकर सम्पूर्ण रूप से सोता है। नवजात शिशुओं की नींद भी गहरी होती हैं। गहरी नींद में हमारे शरीर के प्रत्येक अंग को आराम मिलता है तथा नष्ट हुई शक्ति पुन: प्राप्त हो जाती है। उस वक्त सांस की गति धीमी हो जाती है। नाड़ियां धीरे-धीरे चलने लगती हैं तथा मस्तिष्क में रक्त की मात्रा कम हो जाती है। गहरी नींद लेने वाले व्यक्तियों को स्पर्श और सुनाई नहीं देता है। इस प्रकार के व्यक्ति के जागने पर सबसे पहले उसकी सुनने की शक्ति जागती है। इसके बाद उसकी स्पर्श शक्ति लौट आती है। आंखें सबसे बाद में खुलती हैं। वह व्यक्ति जिसका अपने मन अथवा चित्त पर नियंत्रण होता है वह कहीं भी और किसी भी अवस्था में एकाग्रचित होकर गहरी नींद ले सकता है। हमें यह याद रखना चाहिए कि तीन घंटे की गहरी नींद 8 घंटे की स्वप्नों से भरी नींद से अधिक लाभकारी होती है क्योंकि नींद में सपने आना गहरी नींद के अंतर्गत नहीं आते हैं।

गहरी नींद लाने के सरल उपाय :

  • नियमित रूप से व्यायाम करने से भी हमें गहरी नींद आती है जो कि हमारे शरीर के लिए अधिक उपयोगी होती है।
  • जो व्यक्ति अधिक परिश्रम करते हैं उन्हें हमेशा गहरी नींद आती है जबकि आलसी और निठल्ले व्यक्तियों को नींद नहीं आती है और वे रातभर करवटे बदलते रहते हैं।
  • हमें प्रतिदिन प्रसन्न और शांत मन से सोना चाहिए। इससे हमें गहरी नींद आती है।
  • हमें सूर्यास्त होने से पहले ही रात्रि का भोजन कर लेना चाहिए ताकि सोने से पहले हमारा भोजन पूर्णरूप से पच चुका हो। इस प्रकार का नियम रखने से हमें गहरी नींद आती है। बिलकुल खाली पेट और अधिक पेट भरा होने पर अच्छी नींद नहीं आती है। सोने से पहले दूध पीने से भी अच्छी नींद आती है।
  • गहरी नींद के लिए प्रतिदिन हमें शौच के बाद ठंडे पानी से अपने गुप्तांगों, हाथ-पैरों और मुंह को धोकर सोना चाहिए।
  • हमारे सोने की जगह शांत-स्वच्छ और हवादार होनी चाहिए तथा बिस्तर भी साफ-सुथरा होना चाहिए। शांत और अंधेरे स्थान में सोने से भी गहरी नींद आती है।
  • सोते समय मनुष्य की स्थिति का उसके स्वास्थ्य पर बहुत प्रभाव पड़ता है वैसे तो जिस व्यक्ति को जिस करवट सोना अच्छा लगता है उसे उसी करवट ही सोना चाहिए।  किंतु प्रायः चित्त होकर सोने से नींद में स्वप्न अधिक आते हैं। छाती पर हाथों को रखकर उत्तान सोना तो बिल्कुल ही खराब है। पीठ के बल सोने से पीठ में दर्द, मिर्गी, नजला आदि रोग होते हैं तथा इसी प्रकार के अन्य रोगों से हमारा शरीर ग्रस्त हो जाता है। बाईं करवट सोना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है। इससे श्वासनली सीधी रहती है और शरीर में प्राणवायु का संचार बिना किसी रोक-टोक के होता रहता है। इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि शरीर के बाईं ओर की नाड़ी को इड़ा तथा दाहिनी ओर की नाड़ी को पिंगला कहते हैं। इड़ा नाड़ी में चन्द्रमा की तथा पिंगला नाड़ी से सूर्य की शक्ति प्राप्त होती है। इस प्रकार चन्द्रमा की ठंडक के साथ सूर्य की गर्मी मिलने से मनुष्य प्राकृतिक रूप से स्वस्थ रहता है। यही कारण है कि बाईं करवट सोने वाले व्यक्ति काफी लम्बी उम्र वाले होते हैं। फिर भी जिन्हें हृदय सम्बंधी रोग हो तो उन्हें बाईं ओर की करवट न सोकर दाहिनी ओर की करवट लेकर सोना ही अधिक लाभकारी होता है।
  • कुछ चिकित्सक पेट के बल सोने को अधिक लाभकारी मानते हैं। उनका कहना है कि पेट के बल सोने से पाचन क्रिया में लाभ मिलता है। परन्तु इस अवस्था में मुंह नीचे की ओर नहीं होना चाहिए। अन्यथा इससे आंखों में विकार हो सकते हैं। पेट के बल सोते समय मुंह को दाईं ओर अथवा बांई ओर तकिये पर कर लेना चाहिए। लगभग सभी मनुष्य पेट के बल ही सोते हैं। दाहिनी करवट लेकर हमें अधिक देर तक नहीं सोना चाहिए क्योंकि दाहिनी करवट सोने से यकृत पर अधिक दबाव पड़ता है जिसके परिणाम स्वरूप अग्निमान्द्य की शिकायत हो जाती है।
  • बिस्तर पर लेटने के बाद कंघी से बालों को धीरे-धीरे संवारने से जल्द और गहरी नींद आती है।
  • हमें प्रतिदिन अपने मन को एकाग्रचित रखने के बाद ही सोना चाहिए। ऐसा करने हमें बहुत अच्छी नींद आती है। सोने से पहले हमें कुछ देर तक अवश्य टहलना चाहिए। इस दौरान हमें मस्तिष्क पर बिल्कुल भी जोर नहीं देना चाहिए।
  • नींद लेने के लिए हमें भूलकर भी नींद की गोलियों का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि नींद की गोलियों का हमारे शरीर पर घातक प्रभाव होता है।
  • अच्छी नींद लाने के लिए चारपाई के पायों के नीचे टायर अथवा ट्यूब के टुकड़े काटकर रखे जाते हैं। ऐसा करने से बहुत अच्छी नींद आती है।
  • बूढ़े व्यक्तियों को 24 घंटों में केवल एक बार भोजन करने से उन्हें अच्छी नींद आती है।
  • सोते समय सिर को ऊंचा और बाकी धड़ को नीचा रखना चाहिए। इससे गहरी और अच्छी नींद आती है। सिर को ऊंचा रखने के लिए सिर के नीचे तकिया रखना चाहिए।
  • सोने से पहले अपने दोनों पैरों को 5-10 मिनट तक हल्के गर्म पानी में रखते हैं। इससे मस्तिष्क में एकत्रित रक्त पैरों की तरफ उतर आएगा क्योंकि मस्तिष्क में अधिक रक्त होने के कारण गहरी नींद नहीं आती है। ऐसा करने से हमारा मस्तिष्क ठंडा हो जाता है जिससे अच्छी नींद आती है।
  • ठंडे पानी से स्नान करने के बाद गर्म कपडे़ पहनकर सोने से भी अच्छी नींद आती है। वैसे तो आमतौर पर नंगे बदन सोना सबसे अधिक लाभकारी है। यदि किसी कारणवश हम ऐसा न कर सके तो सोते समय हमें हल्के तथा कम से कम कपड़े पहनने चाहिए। अधिक कपड़े पहनकर सोने से भी अच्छी नींद नहीं आती है।
  • क्रोध, घृणा, प्रेम, चिंता, अधिक भोजन, अधिक परिश्रम, रोग, भय, चाय, जर्दा, काफी, शोरगुल तथा सोने के कमरे में तेज रोशनी होने से नींद कम आती है। जहां तक हो सके हमें इससे बचना चाहिए।
  • सोने से पहले मंत्र ``सोऽहम्´´ का जाप  करने से भी अच्छी नींद आती है। इससे 10 मिनट के अन्दर ही नींद आ जाती है। इस मंत्र के उच्चारण के लिए सांस लेते समय ``सो´´ और सांस को बाहर निकालते समय ``हम`` कहना चाहिए।
  • विभिन्न प्रकार के धातुओं के तारों में विभिन्न रंगों के कांच के मनको को पिरोकर सोते समय पहनने से उनमें विद्युत प्रवाह को उत्पन्न करने से अच्छी नींद आती है। इसके लिए कांच की 3-4 लड़ियों की माला धारण करनी चाहिए।

नींद लेने का निर्धारित समय :

          आमतौर पर प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति को 7-8 घंटे की नींद अवश्य लेनी चाहिए। जिस प्रकार प्रत्येक प्राणी के लिए भोजन की मात्रा निर्धारित करना आसान नहीं होता है उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के लिए नींद का निश्चित समय निर्धारित करना मुश्किल नहीं होता है। आमतौर पर देखा जाता है कि कुछ व्यक्तियों की नींद बहुत जल्द ही पूरी हो जाती है तो कुछ व्यक्ति पूरी रात सोते हैं परन्तु इसके बावजूद भी उनकी नींद पूरी नहीं होती है। नवजात शिशु प्राकृतिक रूप से अधिक सोता है। इसका कारण यह होता है कि उसे अपने शरीर की वृद्धि और विकास के लिए अधिक नींद की आवश्यकता होती है। नवजात शिशु कम से कम 15-16 घंटे प्रतिदिन सोता है। वृद्धों, रोगियों, प्रसूता महिलाओं और शारीरिक रूप से कमजोर लोगों को सामान्य लोगों की तुलना में अधिक नींद की आवश्यकता होती है। महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा अधिक नींद की आवश्यकता होती है तथा गर्भवती महिलाओं के लिए अधिक नींद लाभदायक होती है।

          विभिन्न वैज्ञानिकों और चिकित्सकों ने अनुसंधानों के आधार पर विभिन्न आयु वर्ग के लोगों को सोने के लिए समय निर्धारित किया है जो इस प्रकार से है-

आयु

नींद का समय

एक सप्ताह से लेकर 6  सप्ताह

22 घंटे

1 साल से 2 साल तक

18 घंटे

2 से 3 साल तक

15 से 17 घंटे

3 से 4 साल तक

14 से 16 घंटे

4 से 6 साल तक

13 से 15 घंटे

6 से 9 साल तक

10 से 12 घंटे

9 से 13 साल तक

9 से 10 घंटे

13 से 15 साल तक

8 से 10 घंटे

15 से साल अधिक

7 से 8 घंटे

विशेष :

          आवश्यकता से अधिक नींद लेना भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। अधिक सोने से उम्र घटती है। इसी प्रकार नींद पूरी किये बिना ही उठ जाना रोगों का कारण होता है। अधिक नींद लेने से हमारे शरीर में भारीपन आता है और शरीर में मोटापा बढ़ता है और आलस्य और सुस्ती भी आती है। हमें सोने के लिए अधिक समय पर ध्यान नहीं देना चाहिए बल्कि गहरी नींद के बारे में सोचना चाहिए क्योंकि 4 घंटे की गहरी नींद 8 घंटे की स्वप्नयुक्त नींद से अच्छी होती है।

सोने के लिए स्थान और बिस्तर का निर्धारण :

          हमारी उम्र का लगभग दो-तिहाई भाग सोने में बीत जाता है, इसलिए सोने का स्थान स्वच्छ और हवादार होना चाहिए। यदि हमारे सोने का स्थान कमरा हो तो  वह बड़ा और खिड़कियों से युक्त होना चाहिए तथा उसमें शुद्ध वायु और प्रकाश आने के लिए पर्याप्त खिड़कियां और रोशनदान होने चाहिए। जिस कमरे में सोयें वह कमरा बिल्कुल खाली होना चाहिए। सोते समय कमरे के दरवाजे और खिड़कियां खुली होनी चाहिए। सोते समय सिर को किस दिशा में किस ओर होना चाहिए। इसके लिए भी शास्त्रीय विधान हैं। ``मार्कण्डेय स्मृति`` में लिखा गया है कि रात्रि को सोते समय पूर्व तथा दक्षिण की ओर सिर करके सोने से धन तथा आयुष्य की वृद्धि होती है। पश्चिम की ओर सिर करके सोने से चिंता सताती है तथा उत्तर दिशा की ओर सिर करके सोने से प्राणतत्व नष्ट होते हैं। इसलिए दक्षिण की ओर पैर तथा उत्तर की ओर सिर करके नहीं सोना चाहिए।

          बिस्तर के रूप में गद्दों पर सोना स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक होता है विशेषकर बच्चों और बालकों के लिए जिनका शरीर विकास पर होता है, जिनकी नसों और मांसपेशियों का संगठन हो रहा होता है, जिनके सीने का फैलाव पूरा नहीं हुआ होता है तथा जिनका मेरुदण्ड मजबूत और पूर्ण रूप से विकसित न हुआ हो। समतल और कडे़ बिस्तर, जैसे- चौकी (तख्त), भूमि आदि पर सोने से मेरुदण्ड सीधा रहता है और पेट तथा छाती के यंत्रों को समुचित रीत से कार्य करने का अवसर मिलता है तथा इसके साथ ही श्वास शुद्ध और गंभीर चलती है। वैज्ञानिकों और प्रकृति के उपासकों के अनुसार- पृथ्वी पर सोना सर्वाधिक उत्तम होता है क्योंकि पृथ्वी के संयोग से, संस्पर्श तथा संपर्क से ही पृथ्वी पर रहने वाले प्राणियों की जीवनीशक्ति उपलब्ध होती है। हमारी पृथ्वी में सभी रोगों को नष्ट करने वाली अद्भुत शक्ति होती है। हमें गीली जमीन पर नहीं सोना चाहिए। रेत अथवा घास वाली जमीन पर सोना हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है।

सोने का उचित समय :

          प्राकृतिक नियमों के अनुसार हमें सूर्य के अस्त होने के बाद सूर्योदय तक सोना और सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक काम करना चाहिए। हमारे स्वास्थ्य की दृष्टि से शाम को 9 बजे सोना चाहिए और सुबह के समय 4 बजे बिस्तर छोड़ देना चाहिए।

          हमें दिन के समय नहीं सोना चाहिए। गर्मी के सीजन में थोड़ी देर के लिए नींद ली जा सकती है परन्तु दिन में अधिक देर तक सोना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। दिन में सोने से शरीर में शिथिलता आती है तथा पाचनशक्ति प्रभावित होती है जिससे हमारे शरीर में विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं। सुबह जल्दी उठने वाले व्यक्ति की आयु में वृद्धि होती है, दृष्टि तीव्र होती है, धन, यश तथा स्वास्थ्य और सौन्दर्य की प्राप्ति होती है।

स्वप्न और स्वास्थ्य का सम्बन्ध :

           आमतौर पर स्वप्न उन्हीं लोगों को अधिक दिखाई पड़ते हैं जिन्हें किसी कारणों से गहरी नींद नहीं आती है। इससे स्पष्ट होता है सोते समय अधिक स्वप्न देखना किसी बीमारी का लक्षण है। इसी प्रकार स्वप्न में एक ही दृश्य को कई बार देखना हमारे शरीर में किसी गुप्त रोग होने का संकेत होता है। शोधकर्ताओं ने स्वप्न के बारे में अनुसंधानों से पता लगाया है कि विभिन्न रोगों से ग्रस्त व्यक्ति प्राय: अलग-अलग तरह के स्वप्न देखते हैं जैसे- राजयक्ष्मा (ट्यूबर क्यूलोसिस) से पीड़ित रोगी को हवा में उड़ने के स्वप्न अधिक दिखाई देते हैं। दिल की बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति को प्राय: डरावने स्वप्न दिखाई पड़ते हैं। हमारे द्वारा देखे जाने वाले स्वप्नों के बारे में यह नहीं कहा जा सकता है कि ये किसी रोग के सूचक है। परन्तु यदि स्वप्न में एक ही दृश्य हमें बार-बार दिखाई पड़े तो यह उचित होगा कि ऐसे स्वप्न की उपेक्षा न करके चिकित्सक से उसका परीक्षण करा लेना चाहिए। हमारा खान-पान भी स्वप्न से जुड़ा हुआ है। मांसाहारी व्यक्तियों को अधिकतर रेगिस्तान में प्यास से तड़पते हुए व्यक्ति का स्वप्न दिखाई पड़ता है। इसी प्रकार आवश्यकता से अधिक भोजन करने वाले व्यक्तियों का बुरे स्वप्न दिखाई पड़ते हैं। जो व्यक्ति अधिक परिश्रमी होते हैं उन्हें स्वप्न कम ही दिखाई पड़ते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि शारीरिक परिश्रम और व्यायाम करने से हम स्वप्न से मुक्त हो सकते हैं।

नींद के द्वारा रोगों को दूर करना :

          विश्राम और शिथिलीकरण की भांति ही नींद लेना भी आकाश तत्त्व चिकित्सा के अंतर्गत रोगों को दूर करने का एक उत्तम साधन होता है। जब कोई व्यक्ति किसी रोग से पीड़ित हो जाता है तो चिकित्सक यह कोशिश करते हैं कि किसी प्रकार रोगी व्यक्ति को नींद आ जाए। जिस रोगी को अच्छी नींद आने लगती है उसके विषय में यह समझा जाता है कि उसका रोग बहुत ही जल्द दूर जाएगा। चिकित्सकों के अनुसार ``निद्रा में विभिन्न रोगों को नष्ट करने वाले गुण होते हैं। नींद लेने से शरीर का मल निकलता है और शरीर की अनावश्यक गर्मी दूर होती है तथा शरीर पुष्ट होता है। निद्रावस्था में सांस जाग्रतावस्था की अपेक्षा अधिक लम्बी और तेज चलती है जिसके कारण से फेफड़ों के माध्यम से मल और विष के निकास की क्रिया भी अधिक तेज हो जाती है। यदि रोगी व्यक्ति को नींद आ जाती है तो सोते समय उसके शरीर से मल (विजातीय द्रव्य) शरीर से बाहर निकल जाते हैं। रोगी के शरीर में जितना अधिक विष होगा, उतनी ही अधिक नींद उनके लिए आवश्यक होती है। हमारे शरीर में किसी प्रकार का विकार उत्पन्न होने पर 8 से 10 घंटे की नींद लेना आवश्यक होता है, वहीं साधारण स्थिति में स्वस्थ व्यक्तियों के लिए 5-6 घंटे की नींद ही पर्याप्त होती है। काम करने से हमारे शारीरिक अंगों की जो क्षति होती है, नींद के द्वारा उसकी पूर्ति होती है। यह नाड़ियों का भी सुधार करती है। स्वास्थ्य की दृष्टि से गहरी नींद लेना भोजन से अधिक लाभकारी होता है क्योंकि रोगी को आहार की बिल्कुल भी जरूरत नहीं होती है, परन्तु नींद लेना उसकी जरूरत ही नहीं बल्कि उसके लिए दवा का भी काम करती है। इससे स्पष्ट होता है कि गहरी नींद लेना स्वास्थ्य की दृष्टि से अधिक लाभकारी होता है।


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