वृद्धावस्था के बारे में विभिन्न विद्वानों के अलग-अलग मत हैं। प्राचीन महर्षियों के अनुसार मानव की 70 वर्ष के बाद की आयु को वृद्ध अवस्था माना जाता है तथा उनका कहना है कि 70 वर्ष की आयु के बाद ही मानव के शरीर की सातों धातुएं, इन्द्रियां, बल, तथा वीर्य दिन-प्रतिदिन कम होने लगते हैं। शरीर की त्वचा पर झुर्रियों के पड़ने, सिर के बाल पकने, श्वास, कफ आदि रोग तथा विभिन्न शारीरिक और मानसिक कार्यविधियों को करने में असमर्थ होना आदि विभिन्न प्रकार के लक्षण बुढ़ापे के होते हैं। भूख, प्यास, मृत्यु और नींद के समान ही वृद्धावस्था भी मानव जीवन की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।
प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख किया गया है कि मनुष्य के 60 वर्ष से पहले ही बूढ़े होने के विभिन्न कारण होते हैं- जैसे असंतुलित भोजन करना, लगातार अधिक समय तक परिश्रम करना, दिन में अधिक देर तक सोना, सेक्स क्रिया अधिक करना, नशीले पदार्थों का अधिक मात्रा में सेवन करना, अधिक मात्रा में भोजन करना, रात्रि में बिना भोजन किये हुए ही सोना, अधिक दूर तक पैदल चलना, देर रात तक जागना, अधिक बोलना, असंयम तथा चिंता, भय, क्रोध, लोभ, मोह तथा ईर्ष्या आदि। इसके अतिरिक्त उच्चरक्तचाप (हाई ब्लडप्रेशर), मधुमेह, कैंसर, हृदय का रोग, गठिया, श्वास रोग तथा मानसिक विकारों के होने से व्यक्ति समय से पहले ही बूढ़ा हो जाता है।
कुछ वैज्ञानिकों का मत है कि जिस अवस्था में स्तनधारी प्राणियों का शरीर पूरी तरह से विकसित हो जाता है उससे सात गुना अधिक समय तक वह जीवित रहता है। कुछ जीवधारियों की हृदय गति बहुत अधिक होती है जिससे वह कुछ ही समय तक जीवित रह सकते हैं। इसकी तुलना में धीमी गति वाले मनुष्यों की आयु अधिक होती है। इसके लिए प्राणायाम और अन्य यौगिक क्रियाओं को अपनाया जा सकता है।
सदाचारी व्यक्ति लम्बी आयु वाला होता है। सूर्य किरण और रंग चिकित्सा में उल्लिखित आचार और रसायन सेवन से शारीरिक और मानसिक भावनाएं शुद्धि होती हैं। आचार रसायन के सिद्धांतों के अनुसार सत्य बोलना, क्रोध न करना, शराब का सेवन न करना, विषय भोग से दूर रहना, मीठा बोलना, शांत रहना, पवित्रता रखना, मारपीट-आपराधिक कार्यों से दूर रहना, तपस्वी जीवन बिताना, पूज्यों की सेवा करने वाला, धैर्यवान और दानशील तथा परोपकारी व्यक्ति लम्बी आयु वाले होते हैं। संतुलित नींद लेने वाले, दया का भाव रखने वाले, वातावरण के अनुसार दिनचर्या व्यतीत करने वाले, धर्म में आस्था रखने वाले, दया का भाव रखने वाला, देशकाल के अनुसार दिनचर्या रखने वाले, घमंड से दूर रहने वाले तथा इन्द्रियों को अपने वश में करने वाले व्यक्ति लम्बी आयु वाले होते हैं।
अपने शरीर की जीवनी शक्ति को बढ़ाना ही सबसे उचित चिकित्सा होती है।
प्राकृतिक चिकित्सा के सिद्धांतों के अनुसार सौ वर्ष से अधिक समय तक जीवन जीने के लिए सात नियमों को अपनाना चाहिए जो कि निम्नलिखित हैं-
- मल त्याग में संतुलन का होना।
- नियमित दिनचर्या।
- संतुलित आहार का सेवन करना।
- मन में शुद्ध विचारों को लाना।
- पवित्रता।
- कर्म में विश्वास रखना।
- परोपकारी होना।
लम्बी आयु वाले अनुभवी व्यक्तियों से लम्बी आयु के बारे में जानने पर निम्न निष्कर्ष निकला है जो नीचे दिया जा रहा है-
- अपने मन में किसी भी प्रकार की चिंता नहीं करनी चाहिए तथा हमेशा प्रसन्न रहना चाहिए।
- भोजन को हमेशा चबा-चबाकर खाना चाहिए जिससे पाचनशक्ति ठीक रहती है और व्यक्ति लम्बी आयु वाला होता है।
- हमें अपने भोजन में हरी सब्जियां, ताजे और मीठे फलों आदि का अधिक मात्रा में सेवन करना चाहिए।
- भोजन में ऐसे पदार्थ लेने चाहिए जो चर्बीयुक्त न हो। इससे मनुष्य स्वस्थ बना रहता है तथा लम्बी आयु की प्राप्ति करता है।
- हमें भूख लगने पर ही भोजन करना चाहिए। अधिक मात्रा में भोजन करने से पाचनशक्ति खराब हो जाती है। शाम के समय में दूध, हरी सब्जी और फल आदि ही खाने चाहिए।
- जिन मनुष्यों का स्वास्थ्य अधिक खराब होता है, उन्हें प्रतिदिन अधिक से अधिक दूरी तक पैदल चलना चाहिए। इससे शरीर स्वस्थ बना रहता है।
- किसी भी तरह की परिस्थिति आने पर हमें घबराना नहीं चाहिए तथा हमेशा ही हंसते रहना चाहिए क्योंकि हंसने से व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ बना रहता है।
- किसी भी प्रकार की परेशानी आने पर हमें उसके बारे में सोचकर चिंतित नहीं होना चाहिए क्योंकि चिंता करने से स्वास्थ्य सबसे अधिक प्रभावित होता है।
हमें अपने जीवनकाल में काम, क्रोध, घृणा, ईर्ष्या, राग-द्वेष आदि विभिन्न प्रकार के मानसिक विकारों से दूर रहना चाहिए। इसके प्रयोग से शरीर में विष उत्पन्न होता है जिसके कारण लोगों की उम्र कम हो जाती है। यदि हम किसी कारणवश संतुलित भोजन नहीं करते हैं तो उसका हमारे शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
वृद्धावस्था में स्वस्थ रहना और लम्बी उम्र का रहस्य :
वृद्धावस्था के समय तीन प्रमुख बातों का ध्यान रखने से स्वास्थ्य बना रहता है जो निम्नलिखित हैं-
- सुबह के समय सूर्योदय से पहले उठना।
- सूर्य निकलने से पहले उठकर नंगे बदन सूर्य का प्रकाश अपने शरीर पर लेना चाहिए।
- सुबह के समय बहने वाली जीवनदायिनी वायु का सेवन करने से सभी उम्र के लोगों का स्वास्थ्य उत्तम बना रहता है।
उपर्युक्त नियमों को हमें नियमपूर्वक पालन करना चाहिए। वृद्धावस्था के जीवन के लिए यह तीनों नियम विशेष रूप से लाभकारी होते हैं। इसमें से कोई भी ऐसा नियम नहीं है जिसका पालन करने में हमें किसी भी प्रकार की कठिनाई होती है।
वृद्धावस्था में प्राकृतिक भोजन :
वृद्धावस्था में सादा और संतुलित भोजन, आहार-विहार बहुत ही लाभकारी होता है। विद्वानों के अनुसार मनुष्य के रोगों से पीड़ित होने का कारण उनके शरीर में रासायनिक परिवर्तन होता है।
वर्तमान समय में कब्ज एक ऐसा रोग है जिससे प्राय: सभी लोग पीड़ित रहते हैं। यदि सुबह का नाश्ता छोड़ दिया जाए और दिन में केवल दो बार ही भोजन किया जाए तो लगभग सभी व्यक्तियों को कब्ज से छुटकारा मिलता है।
आवश्यकता से अधिक भोजन करने के कारण हमारे शरीर में कब्ज बनता है तथा सिरदर्द होता रहता है। आधुनिक जीवन में लोगों के भोजन में फास्ट फूड, मैदे से निर्मित वस्तुएं, चाय तथा काफी अधिक मात्रा में होती हैं ये वस्तुएं स्वास्थ्य के लिए बहुत अधिक हानिकारक होती हैं। मैदा, चोकर निकालकर तथा बारीक पीसकर बनायी जाती है। इस कारण से मैदा में व्याप्त विटामिन और खनिज पदार्थ नष्ट हो जाते हैं।
वृद्धावस्था में गाजर और आंवला का सेवन बहुत ही लाभकारी होता है। गाजर हमारे शरीर के सभी विकारों के लिए लाभकारी होता है जबकि आंवले में विटामिन `सी´ की अधिक मात्रा होती है। इसमें प्रोटीन, चिकनाई, खनिज तत्व, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, फास्फोरस आदि विभिन्न प्रकार के उपयोगी पदार्थ भी रहते हैं। हर 100 ग्राम आंवले में 12 मिलीग्राम की मात्रा में लोहा और 600 मिलीग्राम विटामिन `सी´ रहता है।
बादाम, पिस्ता, काजू आदि अनेक मेवे हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत अधिक लाभकारी होते हैं। ये मेवे कीमती होने के कारण आम आदमी की पहुंच से दूर होते हैं। इनके बदले गरीब वर्ग के लोग मूंगफली का सेवन कर सकते हैं क्योंकि मूंगफली हमारे शरीर के लिए उतनी ही लाभकारी होती है जितना कि बादाम हमारे शरीर के लाभकारी होती है। इसी प्रकार से विभिन्न प्रकार की मौसमी हरी साग-सब्जियां तथा ताजे मीठे फल, मूल्यवान पदार्थों की तुलना में अधिक लाभकारी होते हैं। यह सस्ती होने के साथ ही आसानी से उपलब्ध भी हो जाती है।
कब्ज की शिकायत होने पर हमें उपवास करना चाहिए। इससे हमारे शरीर की पाचनशक्ति ठीक हो जाती है तथा पेट साफ होकर कब्ज ठीक हो जाती है। कब्ज की शिकायत होने पर तुरंत ही उपवास शुरू कर देना चाहिए जिससे पेट की स्थिति ठीक बनी रहती है तथा बीमारियों के होने की आशंका नहीं रहती है।
उपवास करने में विभिन्न नियमों का पालन करना चाहिए जो निम्नलिखित हैं-
- सुबह के समय का उपवास : सुबह के समय नाश्ता न करना सुबह के उपवास के अन्तर्गत आता है।
- सायंकालीन उपवास : दोपहर के भोजन के बाद शाम को भोजन न करना शाम के समय का उपवास कहलाता है।
- पूरे दिन का उपवास : पूरे दिन के उपवास में दिन भर भोजन नहीं करना चाहिए। इस दौरान दूध, फलों का रस तथा हल्की खाद्य वस्तुओं का सेवन किया जा सकता है।
- रसाहार उपवास : रसाहार उपवास में हम भोजन के रूप में कुछ भी नहीं सेवन करते हैं। इस उपवास में केवल फलों या सब्जियों के रस का ही सेवन करते हैं।
- फलों का उपवास : इस उपवास में केवल फलों का ही सेवन किया जाता है। इसके अतिरिक्त अन्य किसी भी प्रकार का खाद्य-पदार्थ नहीं लेते हैं।
- पूर्ण उपवास : पूर्ण उपवास के अन्तर्गत पूरे दिन कुछ भी नहीं खाया-पिया जाता है।
- साप्ताहिक उपवास : साप्ताहिक उपवास के अन्तर्गत पूरे एक सप्ताह भर भोजन के रूप में केवल गुनगुने जल, दूध तथा फलों और सब्जियों के रसों का कम से कम मात्रा में उपयोग करना होता है।
- छोटा उपवास : छोटे उपवास में सामान्य भोजन की तुलना में आधी मात्रा में भोजन करना चाहिए।
वृद्धावस्था में कमजोरी न आने देना :
विद्वानों के अनुसार वृद्धावस्था जीवन का पूरी तरह से पके फल के समान होता है जिसमें पूर्ण तौर पर मिठास की उपयोगिता और अपनी एक विशिष्ट पहचान होती है। वृद्धावस्था में पहुंचते-पहुंचते मनुष्य को ज्ञान तथा विभिन्न प्रकार के अनुभव प्राप्त हो जाते हैं तथा संसार के अपार अनुभव से उनका जीवन दूसरों का मार्गदर्शन करने के लिए हो जाता है।
वृद्धावस्था मानव जीवन की एक पूर्ण अवस्था है। बूढे़ व्यक्ति हमारे समाज की धरोहर होते हैं। हमें उस धरोहर को अधिक से अधिक सम्भालकर रखना चाहिए। यदि हम वृद्ध लोगों को छोड़कर बाकी दुनिया की कल्पना करें तो इस दुनिया में हिंसा, अश्लीलता के अतिरिक्त कुछ भी नहीं बचेगा।
वृद्धावस्था मानव जीवन की महत्वपूर्ण अवस्था होती है। एक कहावत है कि मानव का वास्तविक जीवन 40 वर्ष की आयु के बाद प्रारम्भ होता है। वास्तव में संसार के अधिक से अधिक महान कार्य के लिए महान पुरुषों का नाम 40 साल की आयु पूर्ण करने के बाद ही प्रकाश में आया है। वृद्धावस्था शरीर के विकास का अंतिम चरण है। इस अवस्था का व्यक्ति यश, स्मृति, प्रतिष्ठा, ज्ञान, सुलझे हुए अवस्था में विचारों से युक्त होकर जीवन का वास्तविक लाभ ले सकता है।
हमारे समाज में अधिकांश लोग वृद्धावस्था को मृत्यु का समय नजदीक होना मानकर अपने जीवन की उपयोगी अवस्था को व्यर्थ समझने लगते हैं तथा अपने जीवन के बचे हुए दिनों को गिन-गिनकर व्यतीत करने लगते हैं। इससे धीरे-धीरे उन्हें अपनी शक्तियों में कमी महसूस होने लगती है तथा किसी भी महत्वपूर्ण कार्य को करने का उत्साह उनके मन नहीं रह जाता है। वृद्धावस्था में शारीरिक अंगों में कड़ापन, बीमारी, रोग, विभिन्न कल्पनाएं, असमर्थता आदि की कल्पनाएं कुछ कम नहीं होती हैं। ऐसे व्यक्ति जो वृद्धावस्था की इस रूप में कल्पना करते हैं, उनके लिए वृद्धावस्था का समय एक अभिशाप और नर्क के समान हो जाता है।
वास्तव में वृद्धावस्था अपने आप में इतनी रसहीन और कड़वी नहीं होती है जितना कि लोग समझते हैं। महापुरुषों ने संसार के एक से बढ़कर एक महत्वपूर्ण कार्य जीवन के अंतिम समय यानी की वृद्धावस्था में किये हैं तथा इसी अवस्था में कई महत्वपूर्ण सफलताएं प्राप्त की हैं। यह अवस्था अपने आप में नये उल्लास, सुख, जीवन में किये गये कार्यों में संतोष, प्रसन्नता तथा अनुभव की होती है। दूसरी तरफ वृद्धावस्था में लोगों का जीवन अभिशाप अपने जीवन को शक्तिहीन, पराधीनता का अनुभव, तथा गलत सोच विचार के कारण होता है।
वृद्धावस्था और मृत्यु का भय :
इस संसार में दो बातें पूर्णरूप से सत्य हैं- 1. हमें संसार में पृथ्वी पर रहना है। 2. यदि पृथ्वी पर जन्म हुआ है तो किसी न किसी दिन मृत्यु अवश्य होगी। दोनों ही बातें स्पष्ट एवं स्वाभाविक होती हैं। इसके साथ ही प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि उसका सम्पूर्ण जीवन सुखपूर्वक बीत जाए तथा पृथ्वी का त्याग अर्थात मृत्यु के समय भी किसी का प्रकार दु:ख न हो।
वृद्धावस्था में अपने समय का उपयोग, कल्याणकारी, परमार्थिक, परिवृतियों में अपनी सभी शक्तियों को लगा देना चाहिए। इससे व्यक्ति का समय भी आसानी से व्यतीत होता रहता है। इस दौरान उसे न तो अपनी आयु का ध्यान रखता है और न ही बीती हुई बातों और घटनाओं का उसे ध्यान आता है तथा किसी भी चिंता भी नहीं होती है।
वृद्धावस्था में मानसिक तनाव :
वृद्धावस्था में आने पर अच्छी, लम्बी, गहरी तथा मीठी नींद लेना बहुत ही आवश्यक होता है। यह बात तो सभी लोग जानते हैं कि कोई भी व्यक्ति एक सप्ताह तक बिना कुछ खाए-पिये हुए रह सकता हैं परंतु एक सप्ताह तक बिना नींद के रहना असम्भव होता है क्योंकि नींद शरीर और दिमाग की नष्ट हुई शक्ति की पूर्ति करती है तथा मन मस्तिष्क और शरीर को विश्राम पहुंचाती है लेकिन जब मानसिक तनाव के कारण जब व्यक्ति नींद में बेकार की बातें बड़बड़ाता है तो उसके शरीर और स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे पहले तो चिड़चिड़ापन, थकान, भूख न लगना तथा अन्य विभिन्न प्रकार के विकार उत्पन्न हो जाते हैं। जिसके बाद विभिन्न प्रकार के मानसिक तनाव, डिप्रेशन आदि मानसिक रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
वृद्धावस्था में मानसिक विकार और तनाव होने के कारण सिर की नसें फटने लगती हैं। इससे धीरे-धीरे करके अपच, कब्ज आदि विकार भी उत्पन्न हो जाते हैं तथा नशा करने की इच्छा उत्पन्न होती है। लोगों में इस आयु के दौरान शारीरिक और मानसिक तनाव दोनों एक साथ उत्पन्न हो जाते हैं जिसके कारण सेक्स की इच्छा और बात-बात पर क्रोध उत्पन्न हो जाते हैं। इसलिए वृद्धावस्था के दौरान मानसिक तनाव से बचना चाहिए।