परिचय :-
घेरण्ड ऋषि कहते हैं कि भद्रासन का अभ्यास करने से अनेक रोग दूर होते हैं। इस आसन का अभ्याय शांत व स्वच्छ वातावरण तथा स्वच्छ हवा के बहाव वाले स्थान पर ही करना चाहिए।
भद्रासन की विधि-
पहली-
भद्रासन के लिए नीचे दरी या चटाई बिछाकर उस पर घुटनों के बल खड़े हो जाएं। अब अपने दाएं पैर को घुटने से मोड़कर पीछे की ओर ले जाकर नितम्ब (हिप्स) के नीचे रखें। फिर बाएं पैर को भी घुटने से मोड़कर पीछे की ओर ले जाकर नितम्ब (हिप्प) के नीचे रखें। घुटनों को आपस में मिलाकर जमीन से सटाकर रखें तथा पंजे को नीचे व एड़ियों को ऊपर नितम्ब से सटाकर रखें। अब अपने पूरे शरीर का भार पंजे व एड़ियों पर डालकर बैठ जाएं। इसके बाद अपने दाएं हाथ से बाएं पैर के अंगूठे को पकड़ें तथा बाएं हाथ से दाएं पैर का अंगूठा पकड़ लें। अब जालन्धर बंध लगाएं अर्थात सांस को अंदर खींच कर सिर को आगे झुकाकर कंठ मूल से सटाकर रखें और कंधे को ऊपर खींचते हुए आगे की ओर करें। अब नाक के अगले भाग को देखते हुए भद्रासन का अभ्यास करें। इस सामान्य स्थिति में जब तक रहना सम्भव हो रहें और फिर जालन्धर बंध हटाकर सिर को ऊपर करके सांस बाहर छोड़ें। पुन: सांस को अंदर खींचकर जालन्धर बंध लगाएं और भद्रासन का अभ्यास करें।
दूसरी-
योग शास्त्र में भद्रासन की एक और विधि बताई गई है जिसमें आसन की स्थिति पहले की तरह ही रहती है। परंतु उसमें जालन्धर बंध नहीं लगाया जाता और हाथों को पीछे ले जाकर पंजों को पकड़ने के स्थान पर दोनों हाथों को दोनों घुटनों पर रखा जाता है।
सावधानी-
भद्रासन के अभ्यास में पहले दूसरी विधि द्वारा भद्रासन का अभ्यास कर लें उसके बाद पहली विधि वाले भद्रासन का अभ्यास करें।
ध्यान-
इस आसन में आंखों की दोनों भौहों के बीच ध्यान लगाया जाता है, जिससे मन को स्थिर रखने में व मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है।
आसन के अभ्यास से रोगों में लाभ :-
मन की एकाग्रता (मन को स्थिरता) के लिए यह आसन अधिक लाभकारी है, क्योंकि इसमें नाक के अगले भाग पर दृष्टि जमाने से मन एकाग्र (स्थिर) होता है। इससे शारीरिक स्वास्थ्य बना रहता है। इस आसन को करने से भूख बढ़ती है। फेफड़ों के लिए भी यह आसन लाभकारी होता है। इससे पेल्विक भाग व घुटनों की नसें फैलती हैं और शक्तिशाली बनती हैं। इसमें जांघों, घुटनों एवं पिण्डलियों को असीम बल मिलता है।