सांस क्रिया के अभ्यास की कुछ आसन विधि-
- प्राणायाम के अभ्यास से पहले कुछ सांस क्रिया का अभ्यास करना आवश्यक है। इससे प्राणायाम के अभ्यास में मदद मिलती है, जिससे अधिक समय तक प्राणायाम का अभ्यास किया जा सकता है। यह श्वास क्रिया मुख्य रूप से सरल व्यायाम है, फिर भी सांस क्रिया को लयबद्ध बनाने के लिए इस व्यायाम को करना अधिक लाभकारी है। इससे शरीर के सभी अंग-प्रत्यंग स्वस्थ बनते हैं और खून का संचार सही रूप से चलता है। श्वास क्रिया खून को साफ करती है और दूषित वायु को सांस के द्वारा बाहर निकालती है, जिससे शरीर हमेशा स्वस्थ रहता है।
- इस व्यायाम में सांस गहरी व लम्बी ली जाती है, जिससे आगे किये जाने वाले प्राणायाम के अभ्यास में लम्बी श्वास-प्रश्वास (सांस लेने व छोड़ने की क्रिया) क्रिया में सहायता मिलती है। सांस क्रिया अधूरी करने से फेफड़ों में पर्याप्त मात्रा में वायु नहीं पहुंच पाती जिससे फेफड़ों में बने वायु के अनेक कोष बन्द होने लगते हैं। फेफड़ों में बने सभी कोषों में वायु न पहुंच पाने के कारण उसकी कार्य क्षमता नष्ट हो जाती है। इस सांस क्रिया के द्वारा शुद्ध वायु पर्याप्त मात्रा में फेफड़ों में पहुंचती है, जिससे वह पुन: कार्यशील हो जाती है। जिसके फलस्वरूप व्यक्ति को दिल और फेफड़ो का रोग नहीं होता। जो व्यक्ति नियमित इस व्यायाम को करते हैं उनके बाल कभी सफेद नहीं होते तथा उन्हे न्यूमोनिया, प्लूरिसी, अजीर्ण आदि रोग भी नहीं होते। इस क्रिया से फेफड़े मजबूत और छाती चौड़ी होती है। यह आमाशय, जिगर और गुर्दो के अनेक प्रकार के विकारों को दूर करता है। इस श्वास व्यायाम से नस-नस में ताजगी और चेतन्यता आती है, काम में खूब मन लगता है और मानसिक स्वास्थ्य बढ़ता है।
- इस सांस क्रिया को साधारण मानकर अभ्यास न करना अज्ञानता ही है। इन व्यायामों के द्वारा श्वास पर भी नियंत्रण रखा जा सकता है तथा इसके द्वारा प्राणायाम के साथ किये जाने वाले क्रिया कुम्भक, पूरक और रेचक को अधिक देर तक किया जा सकता है। श्वास क्रिया के इस साधारण व्यायाम को 14 प्रकार से किये जाने की विधि बताई गई है, जो इस प्रकार है-
पहली श्वास क्रिया की विधि-
- अभ्यास के लिए स्वच्छ व हवादार स्थान चुने। इसको पार्क या हरे-भरे पेड़ों के बीच भी किया जा सकता है। अभ्यास के लिए सबसे पहले सीधे खड़े हो जाएं तथा दोनों पैरों के बीच 20 से 25 इंच की दूरी रखें। अब पूरे शरीर का भार दोनो पैरों पर बराबर रखें। गर्दन और छाती को सीधा रखें तथा ठोड़ी को कुछ नीचे की ओर झुकाकर रखें। हाथ नीचे की ओर दोनों बगल में जांघ से सटाकर रखें। अब धीरे-धीरे सांस अन्दर खींचें। फिर सांस को अपनी क्षमता के अनुसार तब तक रोककर रखें, जब तक सांस को रोककर रखना सम्भव हो। फिर मुंह खोलकर अन्दर की सांस को बाहर निकाल दें। इस क्रिया का 7 से 10 बार अभ्यास करें। इसके अभ्यास के बाद 2 से 3 मिनट बाद ही दूसरा योगाभ्यास करें।
दूसरी श्वास क्रिया की विधि-
- इसका अभ्यास करने के लिए सबसे पहले सीधे खड़े हो जाएं। अपने दोनों पैरों के बीच 20 से 25 इंच की दूरी रखें। शरीर की स्थिति पहले की तरह ही रखें और ठोड़ी को हल्का नीचे की ओर झुकाकर अपने दोनों हाथ दोनों बगल में सीधा रखें। अब धीरे-धीरे सांस अन्दर खींचते हुए ऊपर से नीचे तक सभी पसलियों को एक-एक करके थपकी दें। जब सांस पूर्ण रूप से अन्दर भर जाए तब हथेली से धीरे-धीरे सम्पूर्ण छाती की मालिश तब तक करते रहें, जब तक अपनी सांस को अन्दर रोककर रख सकते हैं। फिर सांस को धीरे-धीरे बाहर निकाल दें। इस व्यायाम से फेफड़े के सभी कोष खुल जाते हैं, फेफड़े की क्रिया क्षमता बढ़ती है, इसके अभ्यास से फेफड़ों के रोग आदि नहीं होते। जिस व्यक्ति को बराबर जुकाम व खांसी होने की शिकायत होती है, उनके लिए इसका अभ्यास अत्यंत लाभकारी है।
- इस व्यायाम के अभ्यास के बाद 2 मिनट तक पुन: टहलें और उसके बाद इस विधि का अभ्यास करें।
तीसरी श्वास क्रिया की विधि-
- इसमें पहले की तरह ही सीधे खड़े हो जाएं और दोनों पैरों के बीच 20 से 25 इंच की दूरी रखें। दोनों पैरों पर शरीर का बराबर भार रखें। अपनी गर्दन को बिल्कुल सीधी और छाती को आगे की ओर निकाल कर रखें। दोनों हथेलियों को बगल में इस प्रकार सटाकर रखें की अंगूठे पीछे की ओर और उंगलियां छाती की ओर रहें।
- आसन की इस स्थिति को बनाने के बाद गहरी सांस लें। पूर्ण रूप से सांस अन्दर खींचने के बाद अपने क्षमता के अनुसार सांस को अन्दर ही रोककर रखें। फिर सांस को बाहर छोड़ते हुए दोनो बगलों को हाथों से दबाते रहें। सांस बाहर छोड़ते हुए धक्के के साथ वायु को कई बार में बाहर निकाल दें।
चौथी श्वास क्रिया की विधि-
- इसमें तीसरी विधि की तरह ही खड़े रहें और दोनों हाथ को दोनो बगल में कांख के पास रखें (उस स्थान पर रखें जहां पसलियां और पेट मिलती है) कांख के पास हाथ इस प्रकार रखें कि उंगलियां बाईं ओर आमाशय के पास और सीधी तरफ जिगर के पास रहे।
- आसन की इस स्थिति में आने के बाद गहरी सांस अन्दर खींचें। अब अपनी क्षमता के अनुसार सांस को अन्दर ही रोककर रखें। इसके बाद उंगलियों से कांखों को बार-बार दबाते हुए अन्दर की सांस को धीरे-धीरे बाहर छोड़ें। सांस बाहर छोड़ते हुए अन्दर की वायु को बाहर निकाल दें। इस क्रिया का इसी तरह 5 बार अभ्यास करें।
- तीसरी और चौथी विधि के अभ्यास के बाद 1 या 2 मिनट तक टहले या आराम से बैठ कर गहरी सांस लें। फिर मुंह की सीटी बजाने की आकृति बनाकर तेज वेग से अन्दर की वायु को बाहर निकालें। इस क्रिया में वायु को बाहर रोक-रोक कर छोड़ें। इससे शारीरिक थकान व आलस्य दूर होता है और चैतन्यता बढ़ती है।
पांचवी श्वास क्रिया की विधि-
- सबसे पहले सीधे खड़े हो जाएं और दोनो पैरों के बीच 20-22 इंच की दूरी रखें। दोनो हाथों को सामने की ओर सीधा रखें। शरीर के इस स्थिति में आने के बाद गहरी सांस लें। सांस अन्दर खींचने के बाद अपनी क्षमता के अनुसार इसे रोककर रखें। सांस रोककर रखते हुए ही हाथों की मांसपेशियों पर जोर देते हुए मुटि्ठयों को बांध कर कंधों से मिलाएं और फिर सीधा करें। इस तरह सांस को रोककर ही इस क्रिया को कई बार करें। हाथों को कंधों की ओर लाते समय हाथों पर इतना जोर लगना चाहिए कि हाथों में कंपन मालूम होने लगे। फिर वैसे ही जोर लगाते हुए सामने की ओर ले जाएं। इस क्रिया को सांस रोककर ही करें और फिर मुंह के द्वारा अन्दर की वायु को बाहर निकाल दें। इसके बाद छठी विधि का अभ्यास करें।
छठी श्वास क्रिया की विधि-
- इसके लिए पहले सावधान की स्थिति में खड़े हो जाएं और छाती को तानकर व गर्दन को सीधा करके रखें। ठोड़ी को झुकाकर रखें और अपनी नज़र को नाक के अगले भाग पर एकाग्र करें। होठों और भौंहों पर प्रसन्न्ता लाते हुए घुटनों को तानकर रखें। दोनों पैरों पर समान भार डालें और दोनों हाथो को दोनों बगल में रखें।
- इस स्थिति में आने के बाद शरीर को दोनों पैरों पर संतुलित करते हुए सांस को धीरे-धीरे अन्दर खींचें और साथ ही धीरे-धीरे दोनों पंजों पर भार देते हुए शरीर को ऊपर की ओर खींचें। फिर कुछ देर सांस को अन्दर ही रोककर रखें और पंजों पर ही खड़े रहें। फिर धीरे-धीरे श्वास छोड़ते हुए एड़ी को भी धीरे-धीरे नीचे लाएं। इस क्रिया का इसी तरह 10 बार अभ्यास करें। इस क्रिया के बाद 2 मिनट तक आराम करें या सामान्य सांस क्रिया करें।
- इस क्रिया में श्वसन क्रिया का अभ्यास 5 से 10 बार किया जाता है। इसके अभ्यास से पुट्ठे मजबूत और फेफड़ों के साथ सम्पूर्ण ऊर्ध्वांग पुष्ट हो जाते हैं।
सातवीं श्वास की विधि-
- इसके अभ्यास में पहले सावधान की स्थिति में खड़े हो जाएं और पीठ व छाती को तान कर रखें। अपने दोनों हाथ को दोनों बगल में सामान्य रूप से रखें। अब धीरे-धीरे गहरी सांस लें। सांस अन्दर खींचते हुए दोनों हाथों को तान कर मांसपेशियों व नसों को कड़ा करते हुए ऊपर की ओर लाएं। हाथों को सिर के पास लाकर नमस्कार की मुद्रा बनाएं। साथ ही एड़ी को भी ऊपर की ओर उठाते हुए दोनों पंजों पर शरीर का भार डालें।
- अब अपनी क्षमता के अनुसार सांस को अन्दर ही रोककर रखें और पंजों पर खड़े रहें तथा हाथों को ऊपर ही जोड़ कर रखें। फिर सांस छोड़ते हुए धीरे-धीरे एड़ियों को नीचे लाएं और हाथों को भी नीचे लाएं। इस तरह इस क्रिया का 5 से 7 बार अभ्यास करें। इस क्रिया के बाद 2 मिनट तक टहल लें और उसके बाद अगली श्वास क्रिया की विधि का अभ्यास करें।
- इस विधि के अभ्यास से शरीर के अन्दर की नस-नस में रुकी हुई गन्दगी खून के साथ बहकर मूत्र, पसीना व सांस के द्वारा बाहर निकल जाती है। इससे नाड़ी संस्थान (नर्वस सिस्टम) मजबूत होता है और उसकी क्रियाशीलता बढ़ती है। यह शरीर में स्फूर्ति और उत्साह का संचार होता है। इससे प्राणायाम क्रिया में आसानी होती है।
आठवीं श्वास क्रिया की विधि-
नौवीं श्वास क्रिया की विधि-
- नौवीं श्वास क्रिया की विधि के अभ्यास के लिए सबसे पहले सीधे खड़े हो जाएं और दोनों हाथों को कंधे की सीध में सामने की ओर तान कर रखें। अब गहरी व लम्बी सांस खींचें और फिर कुछ समय तक सांस को अन्दर ही रोककर रखें। सांस को रोककर रखते हुए ही दोनों हाथ को मुट्ठी बांधकर ऊपर से नीचे की ओर चक्राकर घुमाएं। फिर सांस को मुंह के द्वारा बाहर निकाल दें। फिर सांस अन्दर खींचें और सांस को रोककर रखते हुए हाथों को नीचे से ऊपर की ओर घुमाएं।
- इस क्रिया में हाथों को घुमाने की क्रिया सांस को रोककर ही करें और सांस छोड़ते ही पहले वाली स्थिति में आ जाएं। इस तरह इस क्रिया का 5 से 7 बार अभ्यास करें।
दसवीं श्वास क्रिया की विधि-
- इस क्रिया में नौवीं श्वास क्रिया की विधि के समान ही खड़ें हो जाएं। अपनी छाती को तानकर रखें और दोनों हाथों को सामने की ओर करके रखें। अब सांस खींचते हुए गहरी व लम्बी सांस लें। अब सांस को रोककर रखें और मुटि्ठयों को बांधकर दोनों हाथों को ऊपर से नीचे की ओर चक्राकर घुमाएं। साथ ही एड़ियों को भी धीरे-धीरे ऊपर उठाएं। फिर सांस छोड़ते हुए एड़ियों को धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में ले आए। इसके बाद सांस को अन्दर खींचें और सांस को रोककर हाथों को नीचे से ऊपर की ओर ले जाएं और साथ ही एड़ियों को भी ऊपर उठाते हुए शरीर का भार पंजों पर डालें। इस तरह इस क्रिया का 5 से 7 बार अभ्यास करें।
ग्यारहवीं श्वास क्रिया की विधि-
- इस क्रिया का अभ्यास करने के लिए सुखासन में बैठ जाएं। अपने छाती व पीठ को तान कर रखें। आसन की स्थिति बनने के बाद नाक से रुक-रुककर गहरी सांस लें। इस तरह रुक-रुककर सांस लेते हुए पूर्ण रूप से सांस को अन्दर भरने की कोशिश करें। साथ ही पेट को भी हल्का बाहर की ओर फुलाएं। अब अपनी शक्ति के अनुसार सांस को अन्दर ही रोककर रखें। फिर अन्दर की वायु को धीरे-धीरे नाक के द्वारा बाहर निकाल दें।
- जब यह श्वास क्रिया समाप्त हो जाए तब गहरी सांस लें और होठों को मोड़कर सीटी बजाने की आकृति बनाकर अन्दर की वायु को मुंह से बाहर निकाल दें। ध्यान रखें कि मुंह से रोक-रोककर वायु को बाहर निकालें। इस क्रिया के अभ्यास से 11 प्रकार के श्वास रोग समाप्त होते हैं। इस क्रिया का अभ्यास 5 से 7 बार करें।
बारहवीं श्वास क्रिया का अभ्यास-
तेरहवीं श्वास क्रिया की विधि-
- इस क्रिया को करने के लिए नीचे दरी बिछाकर पेट के बल लेट जाएं। पैरों के तलवे ऊपर की ओर रखें और दोनों हाथों को दोनों बगल में नीचे की ओर करके रखें। सिर को हल्का-सा पीछे की ओर करके रखें और ठोड़ी को फर्श से सटा कर रखें। इस क्रिया में ठोड़ी के साथ नाक और मुंह भी जमीन पर टिकाया जा सकता है।
- अब धीरे-धीरे सांस लेते हुए सीने तथा हाथों को भूमि से सटाकर रखें और कमर समेत पैरों को ऊपर उठाकर रखें। अब इस स्थिति में सांस को जितने देर तक रोकना सम्भव हो रोककर रखें। फिर धीरे-धीरे सांस बाहर निकालते हुए पैरों को नीचे ले आएं।
- यह श्वास क्रिया बारहवीं श्वास क्रिया के विपरीत है। उसमें सांस रोककर सिर और छाती को उठाया जाता है। इसे भी 3 से 7 बार तक किया जा सकता है। इससे बस्ति प्रदेश की पेशियां शक्तिशाली होती है और पेट सम्बन्धी विकार भी दूर होते हैं। यह जिगर की कमजोरी को दूर करता है और कमर के विकारों को नष्ट करता है।
चौदहवीं श्वास क्रिया की विधि-
- इस क्रिया में पहले नीचे दरी बिछाकर पीठ के बल लेट जाएं। अपनी आंखों को बन्द कर लें। दोनों पैरों को आपस में मिलाकर रखें और दोनों हाथों को भी दोनों बगलों में शरीर से सटाकर रखें। अब अपने शरीर को ढीला छोड़ते हुए अपने मन को एकाग्र करें। फिर धीरे-धीरे सांस अन्दर खींचें और फिर सांस को धीरे-धीरे बाहर छोड़ें। ध्यान रहें कि सांस लेते हुए और छोड़ते हुए नाक और फेफड़ों आदि पर कोई दबाव या तनाव न पड़ें। इस क्रिया में सांस लेने व छोड़ने की क्रिया का समय समान होना चाहिए। पहले अपने मन को सांस क्रिया पर लगाएं जिससे सांस लेने व छोड़ने की क्रिया गहरी व लम्बी हो सकें। इसमें सफलता मिलने के बाद अपने मन को सांस क्रिया से हटाकर अंतर आत्मा में लगाएं।
- इस यौगिक क्रिया को 2 से 3 मिनट तक करें। इसके अभ्यास से अंग- प्रत्यंग की थकान दूर होती है और शरीर सुख का अनुभव करता है। इससे मन शांत व एकाग्र होता और इसका नाड़ी संस्थान पर अच्छा असर पड़ता है। यह क्रिया स्नायु कमजोरी को दूर करती है और मानसिक शक्ति को बढा़ती है।
- ऊपर बताई गए सभी क्रियाओं का अभ्यास बिल्कुल आसान है और इनके लाभ असाधारण है। इन सांस क्रियाओं को करने में समय भी कम लगता है। इस क्रिया के सभी अभ्यास 30 से 40 मिनट में ही हो जाते हैं जो व्यक्ति समय के अभाव में सांस क्रिया के सभी अभ्यास को नहीं कर सकते वे इनमे से कुछ अभ्यास को छोड़ कर भी अभ्यास कर सकते हैं। इसके कुछ अभ्यासों को छोड़कर करने से भी अनेक प्रकार के रोग ठीक होते हैं। इन क्रियाओं का अभ्यास प्राणायाम के अभ्यास से पहले करने से प्राणायाम के अभ्यास में लाभ मिलता है। यह आसान, कम समय में होने वाली और अधिक लाभकारी सांस क्रिया है। इस सांस क्रिया का अभ्यास योगी लोग भी करते है, इसलिए इसका अभ्यास सभी व्यक्तियों को करना चाहिए।